Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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नवमोध्यायः
२८१ )
शुद्धात्मा का ध्यान करना, योगों का उपसंहार और अभाव करते हुये सूक्ष्म क्रिया या क्रियानिवृत्ति रूप आत्मपरिणति होजाना शुक्ल ध्यान है । विशिष्ट संयमी के उपशम श्रेणी या क्षेपक श्रेणी में शुक्ल ध्यान पाया जाता है ।
ऋतमर्दनमत्तिर्वा ऋतेभवमातं अता भवमार्तमिति वा दुःखभ्भवं वेत्यर्थः । रुद्रः क्रुद्धस्तत्कर्म रौद्रं तत्र भवंवा । धर्मादनपेतं धर्म्यं । शुचिगुणयोगाच्छुक्लं । लोभाभि-मवादेनं तदाविर्भावोपपत्तेः । शुचिगुणयोगः प्रसिद्धः पारमार्थिकः ।
ऋन अथवा अर्दन तथा अति से आर्त्तशब्द बनाया गया है । ऋत माने दुःख है, ऋते भवं आऋत शब्द से तद्धितवृत्ति अनुसार अरणप्रत्ययकर आर्त्त शब्द बना लिया जाय, त यानी दुःख मे होरहा जो दुर्ध्यान है अह आर्त्तध्यान है । अथवा भ्वादि गण की " अर्द गतौ याचने च" धातु से कृदन्तवृत्ति अनुसार भाव में क्ति प्रत्ययकर अतिशब्द बना लिया जाय, अर्दनं अति इस का अर्थ मांगना है, उस अति में होरहा जो अपध्यान है, वह आर्त्त है, इसका तात्पर्य अर्थ यह हुआ कि, दुःख अवस्था में होरहा अथवा प्रार्थना यानी मांगने की दशा में होरहां ध्यान आर्तध्यान है । यावना ( भीख मांगना ) मृत्यु के तुल्य हैं । "द्वे याचितायाचितयोर्यथासंख्यं मृतामृते" ( अमरकोष) यों आर्त्त शब्द की निरुक्ति करदी गयी है ।
"रुदिर अश्रुविमोचने " धातु से रौद्र शब्द बनाया जाय । रोदयति इति रुद्रः जिसकी कृति सुननेवाले को भी रुलादे वह रुद्र है रुद्र का अर्थ क्रोधी है, उस रुद्र का जो कर्म यानी कृत्य है, अथवा उस रुद्र में होरहा जो विचार है, वह रौद्र है, यों रुद्र शब्द सेतद्धित वृत्ति अनुसार कर्म या भाव अर्थ मे अरण प्रत्ययकर रौद्र शब्द बनाया जाता है । उत्तमक्षमा आदि धर्म से जो अनपेत यानी सहित है, वह धम्यं है धर्म शब्द से अनपेत अर्थ में यत् प्रत्यय कर धर्म्य शब्द साधु बनाया गया है ।
शुचि यानी पवित्र अथवा स्वच्छता गुण के योग से शुक्ल समझा जाय, लोभ, क्रोध आदि विभावों से तिरस्कृत होजाना, मृषानन्दी होजाना, दान, पूजन निमग्न हो जाना आदि परिणतियों से उस शुक्ल ध्यान का पजना नहीं बनता है । शुद्धात्मतत्त्व
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यान प्रकट होता है । शुचि
मे पुरुषार्थ द्वारा मग्न होकर शुक्ल अवस्था मे शुक्ल यानी शुक्लता गुरण का योग होजाना कोई कल्पित नहीं है जैसा बौद्ध या सांख्यों ने मान रक्खा है, किंतु कर्मभार के लघु होजाने पर आत्मा की शुक्लता गुणसे युक्त तदात्मक परिणति होजाती है, यों उत्तमक्षमा, गुप्ति, सामायिक यथाख्यात आदि गुणों के साथ अनिर्वचनीय शुक्लता का योग वास्तविक होकर प्रमाणों से सिद्ध है ।