Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
नवमोध्यायः
२९५)
ध्यानोत्पत्तौ हिंसादीनां निमित्तभावाद्धेतुनिर्देशः। तेन स्मृतिसमन्वाहाराभिसंबन्धः । तत इदमुच्यते ।
रौद्रध्यान की उत्पत्ति मे निमित्तकारण होजाने से हिंसा; अनृत आदि का हेतु अर्थ मे पंचमी विभक्ति कर सूत्र मे कथन कर दिया गया है। हेतु के उस पञ्चम्यन्त निर्देश के साथ स्मृतिसमन्वाहार शब्द का पिछिली ओर सम्बन्ध कर दिया जाय तब तो हिंसा से उपजा स्मृतिसमन्वाहार पहिला रौद्र ध्यान है, इसी प्रकार झूठ आदि से लगा लेना । तिस कारण उच्यमान और अनुवृत्त पदों को जोड देने पर यों वाक्यार्थ बना कर कह दिया जाता है कि -
हिंसादिभ्योतितीव्रमोहोदयेभ्यः प्रजायते। रौद्रं ध्यानं स्मृतेः पौनःपुन्यं दुर्गतिकारणम् ॥१॥ तत्स्यादविरतस्योच्चै देशसंयमिनोपि च । यथायोग निमित्तानां तेषां सद्भावसिद्धितः ॥२॥
मोह का अत्यंत तीव्र उदय होज़ानेपर उपजे हिंसा, झूठ,आदि चारपरिणतियोंसे जो स्मृतियों का पुनः पुनः एकाग्र उठाया जाना है, वह रौद्रध्यान है। जोकि तरक आदि दुर्गतियों मे लेजाने वाला कारण है । वह उच्च कोटि का रौद्रध्यान तो पहिले चार गुणस्थानवाले अविरत जीवों के सम्भवता है और छोटा रौद्रध्यान पञ्चम गुणस्थानवर्ती एक देश संयमो के कदाचित् उपज़ जाता है। (प्रतिज्ञा) क्योंकि उन पोचमे गुणस्थान तक के जीवों के रौद्रध्यान के निमित्त होरहे परिणामों की यथायोग्य सत्ता का पाया जाना सिद्ध होरहा है। अपने अपने कारणों अनुसार कार्यों का उपजना बन बैठता है।
देशविरतस्यापि हिंसाद्यावेशाद्वित्तादिसंरक्षणतंत्रत्वाच्च रौद्रं ध्यानं संभवति तदनुरूपकथादोषोदयात्। केवलमविरतवन्न तस्य नारकादिनामनिमित्तं सम्यक्त्वसामर्थ्यात्
पांच पापों से एक देश विरक्त होरहे देशविरत पांचवे गुणस्थानवाले श्रावक के भी हिंसा, झूठ आदि का अवेश होजाने से तथा धन, घर, कुटुम्ब, आदि के संरक्षण की अधीनता होजाने से कभी कभी रौद्रध्यान होजाना संभवता है, क्योंकि उस रौद्रध्यान के अनुकूल होरहे कथाप्रसंगों का अवसर आजाता है और आत्मा मे राग, द्वेष, हेतुक अनेक दोषों का उदय बन बैठता है । अथवा "कषायोदयात्" पाठ अच्छा