Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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नवमोध्यायः
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कारण है । अद्यावधि शुक्लध्यान नहीं होनेसे मोक्ष नहीं हो सकी थी । परमपुरुषार्थ हो रहे मोक्षका प्रधानकारण ध्यान ही है । उपचरित कारणोंसे छोटासा कार्य भी नहीं होता है, मट्टीकी गाय दूध नहीं देती है, मट्टीका खिलौना घोडा कभी गाडीको नहीं खींच सकता है, तो मुक्ति प्राप्त होना इतना बडा कार्य उपचरित ध्यान से कैसे हो सकता है ? कभी नहीं । वस्तुतः एकाग्रता केवलज्ञानमें भले प्रकार घटित हो जाती है, भलेही छद्मस्थ जीवोंके उपचारसे ध्यान कह दिया जाय क्योंकि उन छद्मस्थोंके चित्तको व्याक्षेप करनेवाले अन्य कारणोंका अस्तित्व पाया जाता है । केवलज्ञानीमें तो व्याक्षेप न होकर स्थिरता परिपूर्ण वर्त रही है । अतः केवलज्ञानीका ध्यान भी मुख्य ध्यान ही है । यथैवस्तुनि स्थैर्य ज्ञानस्यैकाग्यमिष्यते ।
तथा विश्वपदार्थेषु सकृत्तत्केन वार्यते । २१ । मोहानुद्रेकतो ज्ञातुर्यथा व्याक्षेपसंक्षयः । मोहिनस्ति तथा वीतमोहस्यासौ सदा न किम् ॥ २२ ॥ यथैकत्र प्रधाने वृत्तिर्वा तस्य मोहिनः । तथा केवलिनः किं न द्रव्येन्ताविवर्तके || २३ ॥ इति निश्चयतो ध्यानं प्रतिषेध्यं न धीमता । प्रधानं विश्वतत्त्वार्थवेदिनां प्रस्फुटात्मनां ॥ २४ ॥
जिस प्रकार कि एक वस्तुमें स्थिर होकर उपयोग लग जाना ही ज्ञानकी एकाग्रता इष्ट की गयी है । उसी प्रकार केवलज्ञानीकी संपूर्ण पदार्थोंमें एक ही बार स्थिर होकर उपयोग लगा रहना ही ज्ञानकी स्थिरता है, यह किसके द्वारा निवारणकी जा सकती है ? अर्थात् केवलज्ञानीके ज्ञानकी भी संपूर्ण पदार्थों में स्थिरता हो जानाही एकाग्रता है । तब तो केवलज्ञानीके भी मुख्य ध्यान मानना अनिवार्य है । दशवें गुणस्थान तक मोहका उदयं पाया जाता है । आठवें, नवमे, गुणस्थानोंमे मोही जीवके जिस प्रकार ज्ञानी ध्याताके मोहोदयकी तीव्रता नहीं होनेसे व्याक्षेपो ( यहाँ वहाँ उपयोगका बट जाना) का बढिया क्षय हो जाता है । उसी प्रकार सर्वथा मोहरहित केवलज्ञानी के वह व्याक्षेपका नाश भला क्यों नहीं होगा ? भावार्थ - ध्यानको बिगाडनेवाले व्याक्षेपोंका