Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
अपरिपूर्णव्रता उत्तरगणहीनाः पुलाका:. ईषद्विशुद्धपुलाकसादृश्यात् अखंडितव्रताः शरीरसंस्कारद्धिसुखयशोविभूतिप्रवणा वकुशाः, छेदशवलयुक्तत्वात् । बकुशशदो हि शबलपर्यायवाचीह।
___ मुनियोंके चौरासी लाख उत्तर गुणोंसे बहुभाग हीन हो रहे, किन्तु उत्तर गुणोंकी प्राप्तिमें सद्भावनाओंको रखनेवाले, तथा कभी कभी किसी किसी अहिंसादि महाव्रतोंमें भी परिपूर्णताको नहीं प्राप्त हो रहे मुनि महाराज पुलाक कहे जाते हैं । पुलाकका अर्थ छोटा धान्य है। जो कि गेंहूं, चना, चावल आदिसे बहुत छोटा होता है । कभी कभी अपने योग्य शरीर अनुसार भी वह नहीं पूर्ण हो पाता है। पूर्ण विशुद्धि भी नहीं आ पाती है, यों स्वल्पविशुद्ध पुलाक नामक धान्यकी सदृशता हो जानेसे इन मुनियोंको पुलाक नामसे कहा जाता है। जिन मुनियोंके अहिंसादिक मूलव्रत तो अखंडित हैं। किंतु जो शरीरसंस्कार और पिच्छिका आदि उपकरण तथा शिला, शास्त्रवेष्टन आदिको विभूषित करनेमें अनुकुल वृत्ति रखतें हैं, ऋद्धिजन्य सुखकी और यशः प्राप्त करनेकी विभूतिमें प्रवीण रहते हैं। वे वकुशमुनि हैं । छेदना, छेदोपस्थापना या मोहकी शवलता ( विचित्र वर्णों काधारीपना ) से युक्त हो रहनेसे इन विचित्र चारित्रवाले मुनियोंको वकुश कहा गया है । क्योंकि यहां प्रकरणमें चित्रवर्णोंवाले पदार्थको कह रहे शवल शद्वके पर्यायवाची वकुश शद्वका निरूपण किया गया है।
___ कुशीला द्विविधाः प्रतिसेवनाकषायोदयभेदात् । कथंचिदुत्तरगुणविराधनं प्रतिसेवना ग्रीष्मे जंघाप्रक्षालनवत्, संज्वलनमात्रोदयः कषायोदयस्तेन योगात् मूलोत्तरगुणभतोपि प्रतिसेवना कुशीलाः कषायकुशीलाश्चोच्यते । उदके दण्डराजिवत्संनिरस्तकर्माणोंऽतर्महर्त केवलज्ञानदर्शनप्रापिणो निर्ग्रन्थाः । प्रक्षीणघातिकर्माणः केवलिनः स्नातकाः, स्नात वेदसमाप्ताविति स्वाथिके के निष्पन्नः शब्दः । कुत एते निर्ग्रन्थाः पंचापि मता इत्याह;
प्रतिसेवनाकुशील और कषायोदय कुशील इन दो भेदोंसे कुशील जातिके मुनि दो प्रकार हैं । ग्रीष्मऋतुमें जंघा (तिली) का प्रक्षालन कर लेना या शीतवायुके उन्मुख बैठ जाना आदि शिथिलाचार कर्तव्योंके समान जो प्रमादाचरण कर बैठते हैं । यों मूल गुणों और उत्तर गुणोंको पालते हुये भी क्वचित्-कथंचित् उत्तरगुणकी विराधनाका प्रतिसेवन करनेवाले प्रतिसेवना कुशील है । और जिन मुनियोंके अन्य प्रत्याख्यानावरण