Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
चतुर्पु ते भवत्येते कषायसकशीलकाः । निर्ग्रन्थस्नातकौ द्वौस्तः तौ यथाख्यातसंयमे ।। २ ।।
पुलाक मुनि और वकुश पति तथा प्रतिसेवनाकुशील ये तीनों तपस्वी छेदोपस्थापना नामक संयम और सामायिक संयम इन दोनोंमें स्थित रहते हैं । वे ये प्रसिद्ध हो रहे कुशीलसहित कषायकुशील संज्ञावाले साधु तो चारों संयमोंमें वर्तते हैं । अर्थात् सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, और सूक्ष्मसांपराय इन चारों चारित्रोंमें यथायोग्य ठहरे हुये हैं। तथा वे निर्ग्रन्थ और स्नातक दो ऋषिवर तो यथाख्यात संयममें संलग्न हैं।
पुलाक, वकुश, प्रतिसेवना, कुशीलाः सामायिकछेदोपस्थापना नामसंयमद्वये वर्तन्ते । सामायिक छेदोपस्थापनापरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसांपरायनाम संयमतुर्यके कषायकुशीला भवन्ति । निर्ग्रन्थस्नातकौ च यथाख्यातसंयमे स्तः । पुलाकवकुशप्रतिसेवना कुशीलेषु उत्कर्षेणाभिन्नाक्षरदशपूर्वाणि श्रुतं कोर्थः ।
पुलाक, वकुश और प्रतिसेवनाक शील तो सामायिक और छेदोपस्थापना नामक दोनों संयमोंमें प्रवृत्ति कर रहे हैं। तथा कषायकुशील साधु तो सामायिक,छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि और सूक्ष्मसांपराय नामके चारों संयमोंमे प्रवर्त रहे हैं। हां, निर्ग्रन्थ स्नातक दोनों पतीश्वर यथाख्यातसंयममें प्रवृत्ति रखते हैं। अब इन मुनियोंको श्रुतज्ञान कितना होता है ? इसका परामर्श किया जाता है। पुलाक, वकुश और प्रतिसेवनाकुशील मुनियोंमें उत्कृष्टपने करके अभिन्नाक्षर दशपूर्वोका परिज्ञान हो जाना इतना श्रुतज्ञान है। इस अभिन्नाक्षरका अर्थ क्या है ? इसको अगली वात्तिकमें सुनिये ।
सन्त्येकेनाप्यक्षरेणाभिन्ननि साक्षराणि वै, दशपूर्वाणि सन्त्येव तैरन्यूनानि तानि चेत् ॥ ३॥ ते कषायकुशीलाश्च निर्ग्रन्थाश्चेति साधवः ।
तच्चतुर्दशपूर्वाणि धारयन्ति श्रुतं सदा ॥४॥
एक भी अक्षर करके नहीं भिन्न हो रहे ऐसे अक्षरोंसे सहित दशपूर्व ही नियम करके साक्षर दशपूर्व हैं । भावार्थ, गोम्मटसारमें “ एयक्खरादु उबरि एगेगेणक्खरेण