Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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नवमोध्यायः
करुणावश पुलाक मुनि कारित या अनुमोदनासे रात्रिभोजन त्यागव्रतका अक्षुण्ण पालन नहीं कर सका है । अतः व्रतका बिगाड देनेवाला कह दिया है ।
वकुशो द्विप्रकारश्चेदुपकरणशरीरतः ।
तत्र नाना विधा ज्ञेया उपकारणविन्मता ॥ ६ ॥ ते संस्कारप्रतीकाराकांक्षणा प्रतिभण्यते । वपुरभ्यंग संमर्दन क्षालन विलेपना ॥ ७ ॥ इत्यादिसंस्कारभागी शरीरखकशोस्ति वै । एनयोरुभयोर्मध्ये कषायप्रतिसेवना ॥ ८ ॥ द्वयोर्मूलगुणान्नैव विराधयति सर्वदा | विराधयत्यन्यतमं उत्तरं गुणसंश्रितं ॥ ९ ॥
उपकरण वकुश और शरीर वकुश इस प्रकार वकुश जातिके निर्ग्रन्थ तो दो प्रकार हो सकते हैं । उनमें उपकरणोंका विचार अनेक प्रकार माना गया समझने योग्य है । पुस्तक, शास्त्र, पिच्छिका आदि अनेक प्रकारे सुन्दर उपकरणोंमें जिसका चित्त संलग्न हो रहा है । सुन्दरशिला, काष्ठासन, शिष्यमंडल आदि विचित्र परिग्रहों से युक्त हो रहा सन्ता संयमीके योग्य हो रहे कतिपय उपकरणोंकी आकांक्षा रखता है । वे उपकरण वकुश मुनि उन उपकरणोंके संस्कार करने और लगे हुये मलोंके प्रतीकार करने में आकांक्षित रहते कहे गये हैं । दूसरें शरीरवकुश मुनि तो नियमसे शरीरका अभ्यत ( तैलानुलेपन ) वैयावृत्य करनेवालोंके द्वारा शरीरका अच्छा मर्दन किया जाना, शरीरका प्रक्षालन करना, विलेपन, किया जाना, धूल झाडना इत्यादिक शारीरिक संस्का
की सेवाको धार रहा है । यों इन दोनो वकुशों के मध्य में कषायवश प्रतिसेवना लग रही है । कुशील मुनि कषाय कुशील और प्रतिसेवना कुशील ये दो भेद हैं। उन दोनों में प्रतिसेवना कुशील तो अट्ठाईस मूलगुणोकी सर्वथा विराधना नहीं करता है, हां उत्तर गुणों आश्रित हो रहा कदाचित् उत्तरगुणों में से किसी एक उत्तर गुणकी विराधना कर डालता है ।