Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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नवमोध्यायः
३१७)
फणा उठाकर उस स्थानपर अधिमकेगा, ऐसी दशामें अध्ययन, अध्यापन, व्यापार, क्रीडन, आदि सब मिट जायेंगे, यहांतक कि जीवन की आशा भी छोड देनी पड़ेगी।
___ अतः जितने भी पररूप या अन्यसम्बन्धी पदार्थ है । उन सबके प्रत्येक प्रत्येक होकर अनन्तानन्त अभाव प्रकृत वस्तुके शिरपर लदे हुये हैं । जिन प्राणियोंकी मृत्यु हो गई है उनके ध्वन्स बने रहने दो। मात्र पांच हजार वर्ष पहिलेके शवोंको जीवित कर देनेसे वर्तमान प्राणियोंके खानेको एक दाना और ठहरनेको एक अंगुल स्थान भी नहीं मिल सकेगा। भिच्चीमें आकर भूखके मारे वर्तमान प्राणी सब मर जाँयगे।
कः पुनर्वीचार इत्याह,
यहाँ अग्रिम सूत्रकी उत्थानिका उठायी जाती है कि वीचारका अर्थ फिर क्या है ? बताओ । ऐसे पारिभाषिक अर्थ की जिज्ञासा उपस्थित होनेपर सूत्रकार अग्रिम सूत्रको कह रहे हैं।
वीचारोर्थव्यंजनयोगसंक्रान्तिः ॥ ४४ ॥ ____ ध्यान करने योग्य द्रव्य अथवा पर्याय यहाँ अर्थ लिया गया है । व्यञ्जनका अर्थ वचन होता है । मन, वचन, कायद्वारा आत्मीय प्रदेशोंका परिस्पन्द होना योग है, यों अर्थ, व्यञ्जन और योगोंका संक्रमण यानी परिवर्तन होना यहां शुक्ल ध्यानके प्रकरणमें वीचार है । अर्थात् लौकिक विचार करना या अन्य क्रियायें करना कोई यहाँ वीचार नहीं लिया गया है । यों अनिष्ट अर्थकी व्यावृत्ति करनेके लिये विचारका भी पारिभाषिक अर्थ सूत्रकारको कण्ठोक्त करना पड़ा।
कुतोन्यो न वीचार इत्याह,
किस कारणसे यह जान लिया जाय ? कि वीचारका सूत्रोक्त अर्थ ही पकडा जा सके अन्य दूसरे प्रसिद्ध अर्थका नहीं ग्रहण होवे ? बताओ। ऐसी जिज्ञासा प्रवर्तनेपर आचार्य महाराज इन अग्रिम वात्तिकोंको बखान रहे हैं।
अर्थव्यञ्जनयोगेषु संक्रान्तिश्चेतसस्तु या। स वीचारो न मीमांसा चरेर्गत्यनिष्ठतः ॥१॥ एवं निरुक्तितीर्थस्याव्यभिचारित्वदर्शनात् । प्रोक्तं वितर्कवीचारलक्षणं सूत्रतः स्वयं ॥२॥