Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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- नवमोऽध्यायः
२८३)
होकर वर्त रही है। मूल पदार्थ सभी भेद प्रभेदों मे ओत-पोत, अन्वित होकर प्रविष्ट होरहा है, शुक्ल ध्यान आगमगम्य है। प्रत्यक्ष आदि अन्यप्रमाणों से आप्तोक्त आगम की प्रमाणता अत्यधिक है, अतः स्वसंवेद्य होरहे भी आर्त, रौद्र, धर्म्यध्यानोंका दृष्टान्त, अत्यन्तपरोक्ष, आगमगम्य, शुक्लध्यान देदिया गया है।
___ इन चारों ध्यानो मे ध्यानत्व सामान्य एक होने पर भी अन्तर केवल इतना ही है कि, पहिले दो आर्तध्यान, और रौद्रध्यान अप्रशस्त है। इनके होनेपर पापप्रकृति यों में स्थिति, अनुभागशक्तियाँ अधिक पडतो है । हाँ, परलो ओर के दो न्यारे धर्म्यध्यान और शुक्ल ध्यान तो प्रशंसनीय है, क्योंकि इनका सद्भाव होनेपर गौण रूप से पुण्यात्रव होता है और प्रधान रूपसे कर्मों का उपशम या क्षय होता है। कर्मों के दग्ध करने को सामर्थ्य अनुसार धर्म्य और शुक्ल प्रशस्त माने गये हैं। कोई तटस्थ पूंछ रहा है कि फिस कारण से परले दो ध्यानों को प्रशस्तपना है ? स्पष्ट कहिये । ऐसो जिज्ञासा प्रवर्त नेपर ग्रन्थकार कहते है कि उन ध्यानों मे उतरवर्तो दो ध्यानों का श्रेष्ठपना निरूपण करने के लिये तो स्वयं सूत्रकार महाराज अगिले पवित्र सूत्र को कह रहे हैं।
परे मोक्षहेतू ॥२६॥ उक्त चारों ध्यानों मे परलो ओर के धर्म्य और शुक्ल ये दो ध्यान तो मोक्ष के कारण है। धर्म्यध्यान तो परम्परया मोक्ष का कारण है और शुक्लध्यान साक्षात् मोक्ष का कारण है । यद्यपि उपशमश्रेणि मै शुक्ल ध्यान होता है। उपशमरिण का उत्कृष्ट अन्तर कतिपय अंतर्मुहर्त न्यून होरहा अर्ध पुद्गलपरिवर्तन काल है एकबार शुक्लध्यानके होजाने पर भी मोक्ष जाने के लिये किसी किसो जीव को अनन्तभव धारण करने पडते है । तथापि मोक्ष जब भी होगी शुक्लध्यान ही उसकी अव्यवहित कारण पडेगा, धर्म्यध्यान से तो शुक्लध्यान को बीच मे देकर ही मोक्ष होसकती हैं । हां, एक बार भी धम्र्य ध्यान होजाने पर अर्धपुद्गल परिवर्तन काल मे मोक्ष होजाना अनिवार्य है। अतः आर्त रौद्र से न्यारे परले दो शुभध्यान मोक्ष के कारण कहे गये है।
____सामर्थ्यात् पूर्वे संसारहेतू सूत्रिते । संसारहेतुत्वादातरौद्रयोरप्रशस्तत्वं, परयोस्तु धर्मशुक्लयोः प्रशस्तत्वं मोक्षहेतुत्वात् इति । पूर्वाभ्यां धर्म्यस्येव परत्वमिति चेन्न, ब्यवहितेपि परशदप्रयोगाद्विवचननिर्देशाद्वा गौणस्यापि संप्रत्ययः। कुतः परयोर्मोक्षहेतुत्वं पूर्वयोः संसारहेतुत्वमित्याहः
'कण्ठोक्त किये विना ही उच्चार्यमाण इतर पदों की सामर्थ्य से यह बात इसी