Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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नवमोऽध्यायः
२७९)
आजकल के अर्जन साधुओं का यह भी एक मत है कि मात्राओं करके काल की नियत गणना करते रहना ध्यान है, अर्थात् जितने काल मे हाथ घोंटू को छूलेवे उतना काल मात्रा कहा जाता है। ह्रस्व स्वर के उच्चारण मे जितनी देर लगती है, क्वचित् उतना काल मात्रा माना है। एक चुटकी लगाने के समय को भी कोई मात्रा मानते हैं पन्द्रह मात्राओं करके जघन्य प्राणायाम होता है। तीस मात्रा काल मे मध्यम प्राणायाम किया जाता है, और पैतालीस मात्रा काल मे उत्तम प्राणायाम संपन्न होता है । तीन प्राणायामों की एक धारणा होती है इत्यादि ।
आचार्य कहते हैं कि यह ठीक नहीं है, क्योंकि यों तो ध्यान का अतिक्रमण होगा । मात्राओं से काल को गिनते हुए तिसप्रकार चित्त की व्यग्रता हो जाने के कारण ध्यान ही नहीं लग पाता है । चञ्चल अवस्था में ध्यान कहाँ रहा ? अर्थात् पत्तों को गिनते रहना, जापके मनिकाओं को फेरते रहना, अग्नि के सन्मुख आँखे मीचे रहना, पानी में एक टांगसे खडे रहना, वृक्षपर उलटा लटक जाना इत्यादिक कोई भी क्रिया ध्यान नही है |
इस पूर्वोक कथन करके जाप्य देने को भी ध्यानपना निषिद्ध कर दिया गया है । हाँ, दर्शन, स्तोत्र पूजन से जाप्य का फल भले ही अधिक होय किन्तु माला के दान पर बीजाक्षरों का या पञ्चपरमेष्ठी के वाचक पदों का एक सौ आठ बार उच्चारण करना ध्यान नहीं कहा जा सकता है । ध्यान करना विशेष गुरुतर कार्य है, तिस मे भी धर्म्य ध्यान, शुक्लध्यान तो महान् कठिन हैं फिर भी वर्तमान काल और इस देश मे धर्म्यं ध्यान को अभ्यास से साध लिया जाता है ।
विध्युपायनिर्देशः कर्तव्य इति चेन्न गुप्त्यादिप्रकरणस्य तादर्थ्यात् । संवरार्थ तदिति चेन्न, प्रागुपदेशस्योभयार्थत्वात् ततः संवराथं गुप्त्यादिप्रकरणं ध्यानविधौ तदुपाय निर्देशार्थं च भवति । तथापीह सकलध्यानधर्माणामिह सामर्थ्यसिद्धत्वात् ।
कोई जिज्ञासु कह रहा है कि, एकाग्र चिन्तानिरोध को आपने ध्यान कहा सो ठीक समभ लिया, किन्तु उस ध्यान की विधि के उपायों का सूत्रकार को सूत्रों मे कथन करना चाहिये था, सूत्रों में कारणों का निरूपण नहीं होने से ही तो अनेक पुरुष ध्यान के सहकारी कारणों को ही ध्याव मानने लग गये हैं ।
ग्रन्थकार कहते है कि यह तो आक्षेप नहीं करना क्योंकि गुप्ति, समितिपालन, परीषहजय, धर्मधारण, अनशन, प्रायश्चित्त, आदि प्रकरण उस ध्यान की विधि के