Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिकालंकारे
२७४)
तथा एक बात यह भी है कि, अभाव पदार्थ दृष्टांत का अंग भी है । जहाँ जहाँ आग नहीं है वहाँ वहाँ नहीं है, ऐसी व्यतिरेकव्याप्ति को धाररहे व्यतिरेक दृष्टांत का अंश अभाव हो तो हुआ । हेतु के प्राग होरहे अन्यथानुपपत्ति या अविनाभाव अथवा विपक्षासत्व ये पारमार्थिक अभाव स्वरूप हैं । यों उस अभाव को वस्तु के तदात्मक ध होजाने का योग हो जाने से यथार्थ वस्तुपता है, तिसीत्रकार प्रमाण और समोचोन नयाँ का ग्राह्य विषय होजाने से भी अभाव पदार्थ वास्तविक है । विद्यालय में सिंह, सर्प, sia आदि का अभाव समोचोन प्रत्यक्ष प्रमाण का विषय हो रहा है । ऋजुपुत्र नत्र अनुसार वर्तमान काल में पूर्व जन्मों को पर्यायों का अभाव ज्ञात हो रहा है, द्रव्यार्थिक न से अतित्व का अभाव और पर्यायायिक नय अनुसार नित्यपन का अभाव सर्वत्र परिचित हो रहा है । कहाँ तक कहा जाय अभाव तुच्छ पदार्थ नहीं है, किन्तु कार्यता कारणता, आधारता, आधेयता, विशेषणता, विशेष्यता आदि धर्मों को धार रहा भावस्वरूप हैं । घडे में मोंगरा, मुग्दर के लगजाने से घटाभाव (ध्वंस) उपजा, मध्य पीने से ज्ञानाभाव पैदा हुआ, कर्मों का उदय होजाने से असिद्धपना उपजा, कोमल उपकरणों करके झाड देवे पर कंटक, कूडा आदि का अभाव उत्पन्न हुआ, औषधि खाने से रोग का अभाव बना यो अभाव पदार्थ कार्य हैं । तथा अभाव कारण भी है देखिये |
आंधी के अभाव से दीपक की उत्पत्ति हुई, विद्यालय में सिंह, सर्पाभाव से निराकुलता, अध्ययन, अध्यापन हुआ, पुर्वपर्याय का ध्वस हो जाने से उत्तर पर्याय उपजो सो, पाँच सौ वर्षों के प्राणियों का जोवित बने रहना नहीं होने से आधुनिक प्राणियों को उचित आवास, आहार, को प्राप्ति हो रही है । ज्ञानावरण का क्षयोपशम या क्षय हो जाने से ज्ञान उपज बैठता है, यों प्रत्येक कार्य में भाव कारणों से अधिक संख या वाले अभाव पदार्थ कारण बने हुये है। छात्र के मस्तक पर स्वानिरिक घोड़े, हाथी, शस्त्र, अस्त्र, सोट, सन्दूक सब का अभाव है, तभी वह पढ रहा है, भित्ति का अमाव होने पर ही हम परलो ओर का दृश्य देख सकते है, यों अभाव में कारणत्व धर्म भी बैठा हुआ है, अभाव में सादित्व, कार्यत्व, आदि धर्म रहते है, अतः वह आधार भी है । घट मे पटाभाव है, छात्र में अविनीतता का अभाव है, गुरू मे ईर्षा का अभाव है, यों अभाव आय भी है, तिस हीं प्रकार "घटाभाववद् भूतलम् " "आकाशरूप अभाववत्" “कृतघ्नताभावबान् छात्र: " आदि स्थलों पर अभाव विशेषण होरहा है । "भूतले घटाभाव" यहां प्रथमान्त मुख्य विशेष्यक शाद्वबोध माननेपर निष्ठत्व संबंध से घटाभावमे भूतल