Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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नवमोध्यायः
२७३)
तुच्छ अभाव कुछ ठोस कार्य नहीं कर सकते हैं।
कार्यद्रव्यमनादि स्यात् प्रागभावस्य निन्हवे। प्रध्वंसस्य च धर्मस्य प्रच्य वेऽनन्तता व्रजेत्"। "सर्वांत्मकं तदेकं स्यादन्यापोहव्यतिक्रमे, अन्यत्र समवायेन व्यपदिश्येत सर्वथा"।
यदि प्रागमाव वस्तु स्वरूप होकर कार्यकारी नहीं होता तो घटादि कार्य सभी अनादिकालीन बन बैठते। इसी प्रकार ध्वंस को वस्तुभूत नहीं मानने से सभी पर्याये अनन्तकाल तक स्थिर रहतीं, सभी मुर्देघाट, कबरिस्तान, श्मशान भूमियों, जग-जातीं तो वर्तमान काल के मनुष्यों को खाने के लिये एकदाना और बैठने के लिये एक अंगुनस्यान भी नहीं मिलता। अन्योन्याभाव नहीं मानने पर मनुष्य ही घोडा, हाथो, सांप, तत्काल बन जाता, कोई निरापद हार एक क्षण नहीं बैठ पाता । इसो प्रकार अत्यन्ताभाव को वस्तुभूत माने विना जीव का जड़ बन जाना जड़ का चेतन बनजाना रोकने के लिये भला कौन शस्त्र, अस्त्र से सुसज्जित होकर प्रतीहार बन सकता था ? निरुपारव्य तुच्छ अभावों की सामर्थ्य उक्त कार्यों को करने को नहीं है, घोडे के कल्लित तुच्छ सोंग किसोमे गडकर दुःखवेदना नहीं उपजा सकते हैं।
__ दूसरी बात यह भी है कि हेतु का अंग हो जाना, व्यतिरेक दृष्टांत होजाना, परचतुष्टय से प्रकृत वस्तु को नास्तिस्वरूप रखना, प्रतिबन्धों का अभाव करते हुये कार्य को निर्बाध उत्पत्ति कर देना आदि प्रक्रियाओसे अभाव को वस्तुपना या वस्बु का अंश हो जाना आपादन कर दिया गया है । बौद्धों के यहाँ हेतु के पक्षसत्त्व, सपक्षसत्त्व, विपक्षव्यावृत्ति, ये तीन अंग माने गये हैं, "पर्वतो वन्हिमान धूमात् यही धूम का पर्वत में पाया जाना तो पक्षसत्व है। और अन्वय दृष्टांत होरहे रसोई घर में धूमका सद्भाव मिलना सपक्षसत्त्व है, तथा व्यतिरेकदृष्टांत हो रहे सरोवर में धूम का नहीं रहना विपक्षासत्त्व है। यों जिसप्रकार हेतु के पक्ष मे वृत्तिपन आदिक अंग होरहे सन्ते तो भी वस्तुपन का अतिक्रमण नहीं करते हैं, उसी के समान विपक्ष में वर्तने का असत् । पना भी हेतु का अंग है तथा परपक्षका प्रतिषेध करने में अभाव पक्षका अंग भी है, अर्थात् वादी का पक्ष अपने पक्ष को सिद्धि करना और पर पक्ष का प्रतिषेध करना है।
___ " स्वपक्षसिद्धिरेकस्य निग्रहोन्यस्य वादिनः, नासाधनांगवचनमदोषोद्भावनं द्वयोः । अतःपरपक्ष का निषेध करने में अभाववादी के पक्ष का अंग है,प्रतिवादी पण्डित साधन के अंगों को नहीं बोल रहा है, यह अभाव भी वादी के पक्ष की पुष्टि मे अंग हो गये है,