Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्यश्लोकवातिकालंकारे
भी समुचित है जो योगी (ढोंगी) यम, नियमों से रीता होकर संयमी नहीं हैं उसके योग होजाने की प्रसिद्धि नहीं हैं।
____ आ अन्तर्मुहूर्तादिति कालविशेषवचनाच्च नानुत्तमसंहननस्य ध्यानसिद्धिः, तेनोत्तमसंहननविधानमन्यस्येयत्कालाध्यवसायधारणासामर्थ्यादुपपन्नं भवति । तत ऊध्वं तन्नास्तीत्याह
___ध्यान के लक्षणसूत्र मे अन्तर्मुहूर्त कालसे पहिले कालतक ही ध्यान लगता है. इस प्रकार कालविशेष की मर्यादाका निरूपण कर देनेसे भी यह बात सिद्ध हो जातो है कि जो प्राणी उत्तम संहननोंका धारों नही है, उसके ध्यानको सिद्धि नहीं बनती है तिस कारण सूत्रकारने ध्यान के लिये तोन हो आदि के उत्तम संहननों का विधान किया है अन्य निकृष्ट संहननवाले जोव के इतने कतिपप आवलीसे प्रारम्भकर ४८ मिनट मुहूर्त के भीतर अन्तर्मुहूर्त काल तक चित एकाग्र कर अध्यवसाय यानी ध्यान को धारने की सामर्थ्य नहीं है, इससे युक्तिपूर्ण यही सिद्ध होता है कि उत्तम संहननवाला पुरुष ही अन्तर्मुहूर्त कालतक चित्तको एकाग्र कर ध्यान लगा सकता है, उस अन्तर्मुहुर्तकालसे ऊपर पूरा मुहूर्त, दिन, रात, महोना, दो महीना तक ध्यान लगाये रहने को यह सामर्थ्य किसी भी जोव के नहीं है । इसी बात को ग्रन्थकार अग्रिमवार्तिक द्वारा स्पष्ट
अन्तमुहूर्ततो नोवं सम्भवस्तस्य देहिनाम् । श्रा अन्तमुहतोदित्युक्तं कालान्तरविच्छिदे ॥८॥
अन्तर्महूर्त कालोंसे कार कालोंतक प्राणियों के उस ध्यानका लग जाना सम्भव नही हैं, इस कारण मुहूर्त, दिन, मास, आदिक कालान्तरों का व्यवच्छेद करने के लिये मूलसूत्रमे “ आ अन्तर्मुहूर्तात् " यानो अन्तर्मुहूर्ततक ही ध्यान हो सकता हैं, यह कहा गया है।
नहयुत्तमसंहनननोपि ध्यानमन्तर्मुहूर्तादूर्ध्वमविच्छिन्नं ध्यातुमीष्ट पुनरावृत्या परान्तर्मुहूर्तकाले ध्यानसंततिश्चिरकालमपि न विरुध्यते।
उत्तम संहननवाला जीव भी अन्तर्मुहूर्त से उपर कालतक विच्छेदरहित पान को ध्याने के लिये समर्थ नही है। अन्तर्मुहूर्त से ऊपर जाने पर व्यक्तिरूपसे ध्यान