Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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नवमोध्यायः
२४५)
नन्वेवं कल्पनारोपित एव विषये ध्यानमुक्तं स्यात्तत्त्वतः पर्यायमात्रस्य वस्तुनोनुपपत्तेद्रव्यमात्रवत्, द्रव्यपर्यायात्मनो जात्यन्तरस्य च वस्तुत्वात् नयविषयस्य च वस्त्वेकदेशत्वादन्यथा नयस्य विकलादेशत्वविरोधादिति परः । सोषि न नीतिवित्, पर्यायस्य निराकृतद्रव्यपर्यायान्तरस्यैव वाऽवस्तुसाधनानिरस्तसमस्तपर्यायद्रव्यवत् । न पुनरपेक्षितद्रव्यपर्यायन्तरस्य पर्यायस्यावस्तुत्वं तस्य नयविषयतया वस्त्वेक देशत्वेप्यवस्तुत्वनिराकरणात् । " नायं वस्तु न चावस्तु वस्त्वंशः कथ्यते यतः। न समुद्रोऽसमुद्रो वा समुद्रांशो यथैव हि।" इति नियमात् । न च वस्त्वंशः कल्पनारोपित एव बस्तुनोपि तथा प्रसंगात् ।
शंकाकार पण्डित कह रहा है कि इस प्रकार ध्यान की व्यवस्था करनेपर तो कल्पना बुद्धि से आरोपे गये कल्पित विषयमे ही ध्यान होना कहा गया समझो क्योंकि केवल पर्याय को ही तात्त्विकरूप से वस्तुपना बना नहीं सकता है जैसे कि केवल द्रव्यको ही अक्षण्ण वस्तु का स्वरूप नहीं माना जाता है प्रमाणपद्धति से विचारा जाय तो जैनों के यहां द्रव्य और पर्याय स्वरूप हो रहे तथा इन द्रव्य जाति और पर्याय जाति दोनों से न्यारे तीसरो हो जातिवाले अर्थ को वस्तु माना गया है। नयके विषयभत अर्थाश को वस्तु का एक देश व्यवस्थित किया है अन्यथा यानी नयज्ञान के विषय को वस्तु का एक देश नहीं मानकर वस्तु का पूर्ण स्वरूप माना जाय तो नय को वस्तु के विकल अंशका कथन करनेवाले विकलादेशीपन का विरोध हो जावेगा। यहां तक कोई दूसरा विद्वान् कह रहा है ।
आचार्य कहते हैं कि वह पण्डित भी न्याय, नीति को जाननेवाला नहीं है कारण कि द्रव्य और स्वभिन्न तन्निठ न्यारी न्यारी अनेक पर्यायों को निराकारण कर चुके हो एक अकेली पर्याय को ही अवस्तुपना पूर्व प्रकरणों में साधा गया है जैसे कि जिस द्रव्य ने सम्पूर्ण पर्यायों का निराकारण कर दिया है वह कूटस्थ अकेला द्रव्य कथमपि वस्तु का पूर्ण शरीर नहीं कहा जाता है। शीर्ष ( शिर ) तभी शरीरांग हो सकता है जब कि छाती, पेट, नितम्ब आदि अंगों की अपेक्षा रखता है, इसी प्रकार छाती भी तभी जीवित हैं जब कि शिर आदि सात अंगों की अपेक्षा रख रही है, परस्पर अपेक्षा रक्खे विना सभी अंग मर जाते हैं उसी प्रकार वस्तु के अंश हो रहे द्रव्य और व्यञ्जन पर्याय तथा अर्थ पर्याय है। पर्यायों से निरपेक्ष हो रहा केवल द्रव्य कोई वस्तु नहीं है तथैव द्रव्यों की अपेक्षा नहीं रखनेवाली अकेली पर्याय कोई चीज