Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
२४२)
तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
खाना, पढना, पाठ करना आदि क्रियाओं के विषयों में नहीं नियत होकर प्रवर्त रहे मन का एक हो नियत क्रिया के कर्तापने करके अवस्थित हो जाना निरोध है। जिस चिन्ता निरोध का एक संख्यावाला अन ( मुख्य ) हो रहा है सो यह एकाग्र है चिन्ता का निरोध हो जाना चिन्ता निरोध है एकाग्र हो करके जो वह चिन्ता निरोध भी है इस कारण वह एकाग्र चिन्ता निरोध माना गया है यों बहुब्रीहि समास और षष्ठीतत्पुरुष को गभित कर कर्मधारयवृत्ति यहां कर दी गई है।
स कुत इति चेत्, एकाग्रत्वेन चिन्तानिरोधो वीर्यविशेषात् प्रदीपशिखावत् । वीर्यविशेषो हि दीपशिखाया निर्वातप्रकरणत्वे अंतरंबहिरंगहेतुवशात् परिस्पन्दाभावोपपत्तौ विभाव्यते तथा चिन्ताया अपि वीर्यान्तरायविगमविशेषनिराकुलदेशादिहेतुवशादि संप्रत्ययविशेषः समुन्नीयते। तत एकाग्रत्वं तेन चिन्तान्तरनिरोधादेकानचिन्तानिरोध इति नानामुखत्वेन तस्य निवृत्तिः सिद्धा भवति ।
यहां कोई विनीत सज्जन पूंछता है कि वह चिन्तानिरोध फिर किस कारण से उपजेगा ? बताओ। ऐसी शंका उपस्थित करने पर आचार्य महाराज उत्तर कहते हैं कि वह एक अर्थ की ओर मुख्यता करके चिन्ताओं का निरोध हो जाना तो विशेष जाति के उत्साहपूर्ण आत्मीय पुरुषार्थ करके उत्पन्न हो जाता है। जैसे कि आंधी आदि बाधाओं से रहित निरापद प्रदेश में प्रदीप की प्रज्वलित शिखा एकाग्र होकर निश्चल बनी रहती है दीपक की कलिका के हलन, चलन, रूप परिस्पन्द नहीं होनेकी सिद्धि में साधक हो रहा वीर्य विशेष तो अन्तरंग कारण और बहिरंग कारणों के वश से निर्णीत कर लिया जाता है। जीव, अजीव, सम्पूर्ण पदार्थों में अनन्तवीर्य विद्यमान है। अन्तरंग में घृत, तैल आदि की पूर्णता और बहिरंग में तीववायु का प्रकरण मिलने से दीपशिखा की शक्ति इतनी प्रबल हो जाती हैं कि वह दीपक को निश्चल प्रदीप्त बनाये रखती है उसी प्रकार अन्तरंग कारण हो रहे वीर्यान्तराय कर्मके क्षयोपशम विशेष और बहिरंग कारण हो रहे निराकुल प्रदेश, संकल्प, विकल्पों, के अभाव, निरोगता आदि हेतुओं की वशता, शास्त्राभ्यास, संहनन आदिक समीचीन कारण विशेष भी भले प्रकार अनुमान द्वारा निर्णीत कर लिये जाते हैं, दीपशिखा का यहां वहां से तितर, वितर, हो जाने का निरोध कर निःप्रकम्प बने रहने के कारणों को विचक्षण लोग झटिति जान जाते हैं। उसी प्रकार ध्यान करनेवालों की यहां वहां की