Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
पदार्थ ज्ञेय का कोई सम्बन्ध न होता तो उस घटज्ञान द्वारा कोई भी समुद्र, परमाणु आदि पदार्थ ज्ञात कर लिया जाता। चांदी के रुपये ( सिक्के ) से कुछ भी गेहूं, वस्त्र, घृत, लवण आदि पदार्थ मोल लिया जा सकता है। रुपया का किसी विवक्षित पदार्थ के साथ हो गठबंधन नहीं हो रहा है, जिससे कि वह एक नियत पदार्थ का ही क्रय करे।
इसी प्रकार आकाररहित ज्ञान उपज चुका वह चाहे जिस को प्रकाश देगा । सूर्य का उदय हो गया। वह राजा, चाण्डाल सबके घरमे समान रूप से मरिण मुक्ता फल, मल, मूत्र आदि को विशदरूप से प्रकाशता है और जब ज्ञानमे आकार पडेगा उसी को प्रकाशित करेगा। जो पुरुष विक्रेता को मूल्य देगा वही वस्तु का क्रय करेगा, जो मूल्य नहीं देकर क्रय करना अमूल्यदानक्रयित्व दोष है । बौद्धों ने भी__" अर्थेन घटयत्येनां नहि मुक्त्वार्थरूपतां, तस्मात्प्रमेयाधिगतेः प्रमाणं मेयरूपता"
ऐसा कहा है सविकल्पकबुद्धि निर्विकल्पकबुद्धि का अर्थ के साथ इतना ही संबंध करा देती हैं जिससे कि निर्विकल्पबुद्धि में पडे हुये आकार अनुसार वह अर्थ को यथार्थ जान बैठती है, अर्थाकार के अतिरिक्त निर्विकल्पकबुद्धि और अर्थ का कोई वादरायण संबन्ध नहीं है । दूती या कुट्टिनी जो है सो मुंश्चलो अभिसारिका को जार के साथ मात्र इतना ही जोड देती है, जिससे कि उनका आद्य मिलन हो जाय पश्चात् वह दूर हो जाती है।
" भिन्नकालं कथं ग्राह्य इति चेद्गाह्यतां विदुः,
हेतुस्वमेय युक्तिज्ञास्तदाकारार्पणक्षमम् ।"
बौद्धों के यहां ज्ञान को अर्थ से जन्य माना गया है ( तदुत्पत्तिः ) कार्यसे समर्थ कारण एक क्षणपूर्व रहता है। जब संपूर्ण पदार्थ क्षणिक इष्ट हैं तो ज्ञानकाल मे अर्थ हो चुका और अर्थकाल में ज्ञान का आत्मलाभ ही नहीं हुआ था, तब तो भिन्न कालीन ज्ञेय मरा हुआ विचारा उत्तर कालवर्ती ज्ञान के द्वारा ग्राहय कैसे होय । इसका उत्तर युक्तियों को जाननेवाले वौद्ध यही देते हैं कि ज्ञानमे अर्थ का आकार पड जाना ही ज्ञेय की ग्राहयता है। पिता मर गया लडके को अपनी संपत्ति सोंप गया, कृतज्ञ, विनीत पुत्र अपने जनक को सर्वदा ( स्मृति या भावना द्वारा ) जानता रहता है। वैष्णव संप्रदाय अनुसार पुत्र अपने पिता का तर्पण करता है, पिण्डदान करता है जो कि उसी अपने नियत पिता को प्राप्त होता माना गया है । उसी प्रकार हम सांख्य भी विषयों के प्रति नियम की व्यवस्था करते हुये ज्ञान वृत्तियों में विषय का प्रतिबिम्ब