Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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नवमोऽध्यायः
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पड जाना अभीष्ट करते हैं नहीं तो कहां बिचारा अन्तस्तत्व ज्ञान और कहाँ बहिरंग विषय | इनका ऊर्ध्व लोक या अधोलोक के समान संबंध क्या है ? | ग्रन्थकार आचार्य कहते हैं कि यह तो नही समझ बैठना, कारण कि ज्ञानमें आकारों के नही पडनेपर भी विषयों का प्रतिनियम हो जाना सिद्ध है जैसे कि आत्मा के दर्शन गुण का भोगों के साथ नियम बन रहा आप सांख्यों ने माना है । अर्थात्- सांख्यों ने चेतन आत्मा को दुष्टा, भोक्ता, स्वीकार किया है, दर्शन में आकार पडता नहीं है फिर भी प्रकृति से प्राप्त हुये भोग्य पदार्थों को दर्शन करता हुआ आत्मा भोग लेता है । एक प्राकृत भोग्य पदार्थ को सभी आत्मायें नहीं भोगते हैं, विशिष्ट भोग्य को एक नियत आत्मा ही भोगता है। यहां आकर नहीं पड़ते हुये भो प्रत्येक संसारी आत्मा का नियत पदार्थों के दर्शन या भोग के साथ दृश्यपना या भोग्यपना व्यवस्थित हो रहा आपने माना है ।
ज्ञान में आकार माननेपर तो आपके यहाँ और बौद्धों के यहाँ कतिपय दोष आवेंगे यदि तदाकार यानी तद्रूपता होने से ज्ञान को अर्थ का नियामक माना जायगा तब तो सम्पूर्ण समान आकारवाले पदार्थों की उसी एक प्रत्यक्ष ज्ञान करके विशद प्रतिपत्ति हो जानी चाहिये । समान आकारवाले पदार्थों का ज्ञान में प्रतिबिम्ब या चित्र एकसा ही पडेगा एक पुस्तक का प्रत्यक्ष करनेपर उस छापेखाने की एक साथ छापी गई सम्पूर्ण वैसी पुस्तकों का विशद प्रतिभास हो जाना चाहिये । अनुमान या आगमज्ञान हो जाने की बात हम नहीं कहते हैं किंतु सामने रखी हुई पुस्तक का जैसा विशद प्रत्यक्ष हो रहा है वैसा ही चक्षुः द्वारा विशद प्रत्यक्ष उन सम्पूर्ण समान पुस्तकों का हो जाना चाहिये ।
तदुत्पत्ति माननेपर भी बौद्ध इस दोष को भले ही टाल देवें किन्तु अन्य दोषों से बच नहीं सकते हैं। क्योंकि इन्द्रिय, अदृष्ट, आकाश आदिसे व्यभिचार हो जायगा, इनसे ज्ञान पैदा होता है किन्तु उत्पन्न हुआ ज्ञान इन को जानता नहीं है यदि इसका तदाकारता से वार किया जायगा फिर भी ताद्रूप्य, तदुत्पत्ति दोनों का समानार्थी के अव्यवहित पूर्ववर्ती ज्ञानों करके व्यभिचार दोष तदवस्थ रहेगा | जैन सिद्धान्त अनुसार किसी भी आत्मीय गुण किसी भी मूर्त अमूर्त पदार्थ का आकार पडना तभी तो नहीं इष्ट किया गया है । क्वचित् ज्ञान को साकार जो कह दिया है। वहां आकार का अर्थ स्व, पर का संचेतन करना, विकल्पनायें करना मात्र हैं प्रतिबिम्ब धारण करना नहीं । भला सर्वज्ञ के ज्ञान में भूत, भविष्य, पदार्थ क्या प्रतिबिम्ब डाल
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