Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
रहो क्षुधास्वरूप उदराग्नि के जाज्वल्यमान होने पर धैर्य स्वरूप जल से उस अग्नि का उपशम करना क्षुधाविजय है।
उदन्योदोरणहेतूपनिपाते तद्वशाप्राप्तिः पिपासासहनं । पृथगवचनमैकार्थ्यादिति चेन्न, सामर्थ्यभेदात् । अभ्यवहारसामान्यादैकार्यमिति चेन्न अधिक रणभेदात् ।
जलपिपासा वेदनीय कर्म की उदीरणा के हेतुओं का प्रसंग प्राप्त हो जाने पर उस प्यास के वश में प्राप्त नहीं हो जाना पिपासापरीषह का सहना है। यहाँ कोई प्रश्न करता है कि क्षुधा और प्यास परीषह का पृथक् निरूपण करना व्यर्थ है कारण कि दोनों . का एक हो अर्थ है । जठराग्नि के कुपित होने पर ही भूख, प्यास, दोनों लगती हैं । आचार्य कहते हैं यह तो नहीं कहना। कारण कि भूख और प्यास दोनों की सामर्थ्य भिन्न भिन्न है । ज्वरी पुरुष को भूख नहीं लगती है प्यास लगती है। भूख से दूसरी धातुओं की क्षतियां है और प्यास से अन्य धातुओं की हानियां हैं। पुनः किसी का आक्षेप है कि मुख द्वारा दुग्धपान आदि कर लेने से भूख, प्यास, दोनों न्यून हो जाती हैं, यों खाने पीने की प्रवृत्ति का समानपना होनेसे इन दोनों का एक अर्थपनो है। न्यारा न्यारा निरूपण नहीं करना चाहिये । ग्रन्थकार व हते हैं यह तो न कहना। क्योंकि अधिकरणों का भेद है। भूख को दूर करने के रोटी, दाल, भात, लड्डू, आदि न्यारे अधिकरण हैं और प्यास का प्रतीकार करने वालेजल, ठंडाई, इक्षुरस, अनाररस आदि दूसरे ही आलम्बन हैं अतः संयमी को न्यारे न्यारे पुरुषार्थों द्वारा भूख, प्यास, दोनों को जीतना पडता है।
शत्यहेतुसन्निपाते तत्प्रतीकारानभिलाषात् संयमपरिपालनं शीतक्षमा। दाहप्रतीकारकांक्षाभावाच्चारित्ररक्षणमुष्णसहनं, दंशमसकादीनां सहनं । शमशकमात्र प्रसंग इति चेन्न, उपलक्षणत्वात् मशकशब्दस्य दंशजातीयानामादिशब्दार्थप्रतिपत्तेः ।
शीतबाधा के हेतुओं का खूब उपद्रव होने पर उनके विनाशक प्रतीकारों की अभिलाषा नहीं करने से सयम को सब ओर से पालते रहना तीसरी शीतक्षमा है। तीव्र उष्णता प्रयुक्त दाह के उपस्थित होने पर उसके निराकरण की आकांक्षा का अभाव हो जाने से चारित्र को वाल वाल रक्षित रखना उष्णपरीषहसहन है । डांस, मच्छर, वैमते, दुकचोंटी, वर्र, ततैया आदि की बाधाओं को समतापूर्वक सहना स्वल्प भी प्रतीकार करने में मन न लगाना दंशमशकजय है। यहाँ कोई पल्लवग्राही पण्डित आक्षेप उठाता है कि दंशमशक परोषह में डांस, मच्छरों का ही ग्रहण होगा। क्योंकि ये ही सूत्रकार द्वारा कंठोक्त