Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
१९३)
नवsमोध्यायः
www.wwww^^^^^^^
यहां कोई आशंका उठाता है कि उस सूक्ष्मसांपराय का गुप्ति मे अन्तर्भाव कर लिया जाय, क्योंकि इसमे प्रवृत्तियों का निरोध होता है, या समिति मे डाल दिया जाय, कारण कि समीचीन अयन यानी प्रवर्तन है । आचार्य कहते हैं कि यों तो नहीं कहना, इसका हेतु यह है कि उन प्रवृत्तिनिरोध या सम्यक् अयन के होते हुये भी सूक्ष्मसांपराय चारित्र के विशेषतया निमित्तकारण हो रहे गुरणका यहां आश्रय लिया गया है, लोभसंज्वलन नाम का कषाय जिस गुणस्थानमे धुले हुये कुसूंभी (कसूमल ) वस्त्रकी अत्यल्प लालिमा समान अत्यन्त सूक्ष्म हो गया है, इस विशेष का यहां अवलम्ब लिया गया है ।
चारित्र मोहनीय कर्म का परिपूर्ण रूप से उपशम या क्षय हो चुकनेसे जो ग्यारहवे आदि गुणस्थानों में संयम होता है वह यथाख्यात चरित्र है, अथवा यथाख्यात शद्वको निरुक्ति द्वारा यो अर्थ भी निकला जाय कि जिसप्रकार आत्मा का स्वभाव अवस्थित है, उसी प्रकार आत्माके स्वभाव का उल्लघन नहीं करके बखान दिया गया होने से यह यथाख्यात चारित्र अन्वर्थ है । इस सूत्र मे समाप्ति अर्थ को कह रहे इति शब्दका ग्रहण किया गया, जोकि उस यथाख्यात चारित्र से कर्मों की क्षयद्वारा समाप्ति को ज्ञापन करनेके लिए है । सम्पूर्ण कर्मों की क्षयकी परिपूर्णता यथाख्यातचारित्र से ही सिद्ध होती है ।
सामायिकादीनामुत्तरोत्तरगुणप्रकर्षख्यापनार्थमानुपूर्व्यवचनं प्राच्यचारित्रद्वय
विशुद्धे रल्पत्वादुत्तरचारित्रापेक्षया परिहारविशुद्धिचारित्रस्य ततोनन्तगुरणजघन्यशुद्धित्वात् । तस्यैव तदनन्तगुणोत्कृष्ट विशुद्धित्वात् पूर्वचारित्रद्वयस्य तदनन्त गुरगोत्कृष्ट विशुद्धित्वात् । ततः सूक्ष्म सांप रायस्यानंतगुणजघन्य विशुद्धित्वात् तस्यैव तदनन्तगुरगोत्कृष्टत्वात्, ततो यथाख्यातचारित्रस्य सम्पूर्णविशुद्धित्वात् । एतदेवाह -
द्वन्द्व समास कर देने पर सुसंज्ञक या अभ्यर्हित अथवा अल्पाच्तर पद पूर्वमे प्रयुक्त हो जाते हैं, यह शब्द संबंधी न्याय है, किन्तु अर्थसम्बंधी न्यायमे उक्त नियम लागू नहीं होता, अतः वक्ता को जिस प्रकार अर्थ की प्रतिपत्ति कराने में लघुमार्ग प्रतीत होता हैं, तदनुसार ही पद आगे पीछे घर दिये जाते हैं ।
इस सूत्र मे सामायिक के पीछे छेदोपस्थापना और उसके पीछे परिहारविशुद्धि कार्मिक आनुपूर्वी अनुसार निरूपण करना तो सामायिक आदि चारित्रों मे से उत्तर उत्तर के ( अगिले अगिले के) गुणों की प्रकर्षता को प्रसिद्ध कराने के लिए है । पहिले सामयिक छेदोपस्थापना इन दोनों चारित्रों की जघन्य अवस्था की विशुद्धि अगिले चारित्रों की अपेक्षा सबसे थोडी है, उस विशुद्धि से परिहारविशुद्धि चारित्र की जघन्य विशुद्धि अनन्तगुणी है ।