Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
___" प्रायश्चित्तविनय " इत्यादि सूत्र से अनुवृत्त किये जा रहे स्वाध्याय इस पदका वाचना आदि प्रत्येक के साथ विधेय दलक ओर संबंध कर लिया जाय । आप्तोपज्ञ निर्दोष ग्रन्थका या उसके अर्थका अथवा दोनोंका योग्य विनीत पात्र मे प्रतिपादन करना, वाचना नामक स्वाध्याय है।
उत्पन्न हये संशय का छेद करने के लिये अथवा निर्णीत हो चुके का पुनरपि बलाधान यानी दृढ अवधारण करने के लिये,जिससे कि कालान्तरमे भी संशय नहीं हो सके, दुसरे प्रकांड विद्वान् के प्रति सविनय प्रश्न उठाकर पूछना, पृच्छना स्वाध्याय है। पूछने वाला विनीत पुरुष अपने उत्कर्ष या दूसरों का तिरस्कार तथा उपहास हो जानेका अणुमात्र भी विचार न रक्खे । जीतने की इच्छा, जोरसे चिल्लाना, अपना प्रभाव जमोना, आदि दूषण प्रश्नकर्ता को टालने चाहिये, तभी तत्वबु भुत्सा अनुसार यथार्थज्ञानकी प्राप्ति हो सकेगी।
जान लिये गये प्रमेय अर्थका मनसे चिन्तना करते ये अभ्यार करना अथवा उन अर्थों को बार बार चिंतन करना, अनुप्रेक्षा स्वाध्याय है।
____ ज्ञात हो चुके पाठको पुनः पुनः परिवर्तन करते हुये शुद्ध घोकना,आम्नाय स्वाध्याय है । घोखते हुये प्रतिष्ठा या अन्य इस लोक सम्बन्धि फलोंकी आशा नहीं रखी जाय । अधिक शीघ्रतासे या अधिक विलम्ब से उच्चारण करना, गीत गाना, शिर को कपाना, अर्थ को नहीं समझकर रटना, अति मन्द स्वर से घोखना, इत्यादि ऐबों को टालकर घोखा जाय।
देखे जा रहे लौकिक प्रयोजनों का परित्याग कर मिथ्या मार्ग की निवृत्ति के लिये अथवा दूसरों के सन्देह को व्यावृत्ति के लिये आर्षप्रणीत धर्मकथा, आचार प्रकाशन और अंगपूर्व सम्बन्धी प्रज्ञापनीय तत्त्वोंका प्रतिपादन करना, धर्मोपदेश नामका स्वाध्याय है।
स्वाध्याय तपको करने का प्रयोजन यह है कि हिताहित का विवेक करने वाली प्रज्ञाबुद्धि मे अतिशय उपजे, निर्दोष प्रशसनीय तत्त्वोंका अध्यवसाय किया जाय, आप्तोक्त शास्त्रोंकी अक्षुण्ण स्थिति बनी रहे, श्रोताओं, वक्ताओं के संशय का निराकरण हो जाय, अन्य मिथ्यादार्शनिकों का उपद्रव नहीं सता सके, दूसरों के हृदय मे जैन सिद्धांत को धाक जमा दो जाय, स्वपक्षमण्डन, परमतखण्डन, अपने को और दूसरे भव्यों को शीघ्र मोक्ष मार्ग पर ले जाना, वैराग्य तपोवृद्धि, आत्मविशुद्धि आदिक फल स्वाध्याय के प्रसिद्ध ही है।