Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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नवsमोध्यायः
नवादीनां भेदशद्वेनोपसंहितानामन्यपदार्था वृत्तिः । द्विशद्वस्य पूर्वनिपातप्रसंग इति चेन्न, पूर्वसूत्रापेक्षत्वात् । शाद्वान्न्यायाद्द्द्वंद्वे सुरल्पाच्तरमिति सूत्रात्संख्याया अल्पीयस्या इत्युपसंख्यानाच्च द्विशद्वस्य पूर्वनिपातप्रसवतावप्यार्थान्न्यायात् प्रायश्चित्तादिसूत्रार्थापेक्षया यथाक्रममभिसंबंधार्थलक्षणमुल्लंघ्यते, अर्थस्य बलीयस्त्वात् लक्ष्यानुविधानाल्लक्षणस्य । एते च नवादयः प्रभेदा इत्याह
संख्या व संख्येय को कह रहे और परली ओर पडे हुए भेद शव के साथ द्वन्द्व समास गर्भित उपसन्धान को प्राप्त हो रहे नव, चतुर आदि पदोंकी अन्य पदार्थों को प्रधान रख रही बहुव्रीही समास नामकी वृत्ति कर ली जाय, तब तो प्रायश्चित्त आदिके नौ, चार, दश, पांच, दो भेद हैं, यह सूत्रार्थ हो जाता है ।
यहां कोई शंका करता है कि सूत्रमे द्वन्द्व समास को प्राप्त हुए द्वि इस शद्व का सबके पूर्व में नियम से पड जानेका प्रसंग आता है । ग्रन्थकार कहते हैं कि यह तो न कहना, क्योंकि पूर्व सूत्रमे कह कहे गये प्रायश्चित्त आदिके भेदोंकी अपेक्षा अनुसार व्युत्सग के भेदोंको प्रतिपत्ति करानेके लिए पीछे द्वि शब्द कहा गया है ।
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द्वन्द्व समास सुसंज्ञवाले इकारान्त, उकारान्त पदोंका पूर्वमे निपात कर उच्चारण किया जाता हैं, एवं जिस पदमे अतिशय करके अल्प अच् होंय उस पद का भी पूर्व से निपात हो जाता है । तीसरी बात यह भी सूत्रोंसे अतिरिक्त वार्तिकों द्वारा कही गयी है कि संख्यावाची पढोमे अत्यन्त अल्पसंख्याको कह रहे पदका पूर्वमे निपात होता है । ये तीनों नियम द्विशब्दका पहिले उपादान करनेमे लागू हो रहा है, यों शद्वशास्त्र सम्बन्धी वैयाकरण न्यायसे द्वि शब्द के पूर्व निपात हो जानेका प्रसंग आ पर भी अर्थसम्बन्धी न्यायसे प्रायश्चित्त, विनय आदि सूत्र के अर्थकी अपेक्षा करके क्रम अनुसार उद्देश्य विधेय दोनोंका सम्बन्ध करनेके लिए व्याकरण के लक्षण सूत्रोंका उल्लंघन कर दिया जाता है, " द्वन्द्वे सुः " " अल्पाच्तरं " इन सूत्रोंसे तथा “ संख्याया अल्पीयस्या: इस उपसंख्यान किये गये वार्तिक से जो द्वि शब्द का पूर्व निपात होना आवश्यक पडा है, अर्थ संबंधी नीति से इसकी उपेक्षा की गयी है, क्योंकि न्याय शास्त्रमे शब्दकी अपेक्षा अर्थं अत्यधिक बलवान होता है । व्याकरण के लक्षण सूत्रोंको लक्ष्य के अनुकूल कार्य करना चाहिये, सिद्धांत या न्यायशास्त्र के अनुयामियोंको थोडा व्याकरण का लक्ष्य रखना पडता है, किन्तु वैयाकरणों को अर्थका बहुभाग ध्यान रखना चाहिये, तभी तो " मित्रे चषों " आदि सूत्र बनाने पडे ।
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