Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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अष्टमोऽध्यायः
(६०
सामर्थ्य है इस रहस्य का निर्णय किस प्रकार से किया जाय ? बताओ । ऐसी जिज्ञासा प्रवर्तने पर सूत्रकार महाराज अगले सूत्र को कह रहे हैं ।
स यथानाम || २२ ॥
वह कर्मों का विपाक तो कर्मों की अन्वर्थसंज्ञा अनुसार जान लिया जाय । ज्ञानावरण कर्म का सामर्थ्य ज्ञान को आवरण करने का है, और दर्शनावरण का अनुभव दर्शनशक्ति का घात करना है आदि । बहुत अच्छा प्रमोद का अवसर है कि सर्वज्ञआम्नाय अनुसार कर्मों के नाम वही प्रसिद्ध चले आ रहे हैं जो कि उनका शब्दार्थ निकालता है यों सभी मूल प्रकृतियोंका वाचकनामके वाच्यार्थ अनुसार विपाक हो रहा समझ लिया जाय । यस्मादिति शेषस्तेन ज्ञानावरणादीनां सविकल्पानां प्रत्येकमन्वर्थसंज्ञानिर्देशात् तदनुभवसंप्रत्ययः । ज्ञानावरणादिकमेव हि तेषां प्रयोजनं नान्यदिति कथमन्वर्थसंज्ञा न स्यात् ? ततः -
उक्त सूत्र का वाक्यार्थ करते हुये यस्मात् इस शेष रहे पद के अर्थ को जोड लेना चाहिये, तिस कारण सूत्र का अर्थ यों हो जाता है कि भेद-प्रभेदों से सहित हो रहे ज्ञानावरण आदि कर्मों के प्रत्येक की स्वकीय यौगिक अर्थ को ले रही संज्ञा का निर्देश कर देने से उन कर्मों के फल देने की सामर्थ्य का समीचीन ज्ञान हो जाता है । छोटा नाम नहीं रख इतनी लम्बी चौड़ी, संज्ञा धरने का यही प्रयोजन है कि पुनः उन कर्मों के पारिभाषिक या रूढ अर्थ नहीं करने पडे । उन ज्ञानावरण आदि कर्मों का ज्ञान का आवरण कर देना आदिक ही प्रयोजन है अन्य कोई इतने बडे शब्दप्रयोग का फल नहीं है । हाँ, कर्मों का नाम वाच्यार्थ अनुसार घटित हो जाने से इनकी अन्वर्थ संज्ञा क्यों नहीं समझी जावेगी ? अर्थात् अवश्य इन कर्मों का जो नाम हैं वही इनका कार्य हैं यह निर्णीत हो जाता हैं । और तिस निरूपण से क्या सिद्धान्त पुष्ट हुआ ? उसको अगली दो वार्तिकों द्वारा समझियेगा । सामर्थ्यान्नामभेदेन ज्ञायेतान्वर्थनामता, नुर्ज्ञानावरणादीनां कर्मणामन्यथाऽस्मृतेः ॥ १ ॥ तथा चानुभवप्राप्तैरात्मनः कर्मभिर्भवेत् । एषोनुभवबन्धोस्यान्यास्त्रवस्य विशेषतः ॥ २ ॥ ज्ञानावरण, दर्शनावरण आदि कर्मों के भिन्न भिन्न नामों अनुसार आत्मा को