Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थलोकवातिकालंकारे
बड़ा भारी दोष है चारों पुरुषार्थों का नाश करने वाला है लोक में व्यभिचारी की निन्दा होती है। इसी प्रकार क्षमा क्रोध, मार्दवमान, आर्जव माया, आदि में गुण दोषों की भावना करने से कर्मों के संवर का हेतुपना परिपुष्ट होता है। वह उपरिम वक्तव्य किस प्रकार सिद्ध हो जाता है ? ऐसी जिज्ञासा उत्थित होने पर ग्रन्यकार इस अग्रिम वार्तिक को स्पष्ट कह रहे हैं।
दृष्टकार्यानपेक्षाणि क्षमादीन्युत्तमानि तु। स्थाद्धर्मः समितिभ्योन्यः क्रोधादिप्रतिपक्षतः ॥१॥
लोक में देखे जा रहे अभिप्रेत कार्यों की नहीं अपेक्षा कर किये गये क्षमा, मार्दव, आर्जव, आदिक धर्म तो उत्तम कहे जावेंगे और जो किसी लौकिकप्रयोजनवश क्षमा आदि पाले गये हैं वे क्षमा, मार्दव, आर्जव, आदि भले हो समझे जाय। किन्तु उत्तमक्षमा, उत्तममार्दवादि नहीं कहे जा सकते हैं। क्रोध, मान, आदि के प्रतिपक्षी हो जाने से ये धर्म उन समितियों से न्यारे हैं।।
क्रोधादिप्रतिपक्षत्वमित्येव धर्मः, उत्तमायाः क्षमायाः क्रोधप्रतिपक्षत्वात् मार्दवाजवशौचानां मानमायालोभविपक्षत्वात् सत्यादोनामनृतासंयमातपोऽत्यागममत्वाब्रह्मप्रतिकूलत्वाच्च । स हि धर्म उत्तमक्षमादीन्येव समितिभ्योन्यः सूत्रितः । नन्वत्र व्यक्तिवचनभेदाद्वैलक्षण्यमिति चेन्न, सर्वेषां धर्मभावाव्यतिरेकस्यैकत्वादाविष्टलिंगत्वाच्च । कस्य पुनः संवरस्य हेतुर्धर्म इत्याह -
___ क्रोध आदि से प्रतिपक्षपने की भावना करना इस हो कारण ये धर्म हैं। क्योंकि उत्तमक्षमा को क्रोध का प्रतिपक्षपना प्रसिद्ध है। मार्दव, आर्जव और शौच धर्मों को मान, माया और लोभ का विपक्षपना सिद्ध है तथा सत्य, संयम, तपः, त्याग आदि धर्मों को झूठ, असंयम, अतपस्या, अत्याग, ममत्वभाव, अब्रह्म, इन दोषों का प्रतिकूलपना होने से विपक्षपना निर्णीत है। अतः वह धर्म नियम से उत्तम क्षमा आदि स्वरूप ही हो रहा संता पूर्वोक्त समितियों से न्यारा इस सूत्र द्वारा कहा गया है।
यहाँ कोई शंका करता है कि उददेश्यदल और विधेयदल में समान विभक्ति और समान वचन होना चाहिये । किन्तु यहाँ दश उद्देश्य व्यक्तियों का एक धर्म व्यक्ति के साथ वचनभेद हो रहा देखा जाता है । ब्रह्मचर्याणि बहुवचन है और धर्मः एकवचन है। नपुंसक लिंग और पुल्लिगका भी भेद है । अतः यह सूत्र का कथन विलक्षण है । शब्द के लक्षण