Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
बंधेगे । एक एक जीव के अनन्तानन्त भव हो चुके हैं। एक भव वर्तमान में हो रहा है मोक्ष जाने वाले जीव के यथायोग्य संख्यात, असख्यात, अनन्त भव भविष्य में होने वाले हैं । अभव्य या दूरभव्य के अनन्तानन्त भव होंगे। गुजर गये भूतकाल से आगे आने वाला भविष्यकाल अनन्तानन्त गुणा बडा है । वह प्रदेशबन्ध आत्मा के प्रदेश परिस्पन्द हो जाना रूप पन्द्रह योगों से होता है। कर्मपुद्गलों के आ जाने से आत्मा बढ नहीं जाती है। किन्तु वे प्रदेश सूक्ष्म हो रहे सन्ते उसी आत्मीय क्षेत्र में समा जाते हैं और स्थिति पूरी होने तक वहीं ठहरे रहते हैं। वे कर्मप्रदेश आत्मा के सम्पूर्ण प्रदेशों में बंधते हैं जैसे संतप्त लोहे के गोले में ऊपर, नीचे, भीतर सर्वत्र पानी खिच जाता है उसी प्रकार एक, दो, तीन, आदि प्रदेशों में ही नहीं किन्तु ऊपर, नीचे, तिरछे सब ओर आत्मा में व्याप्त होकर कर्म वर्गणायें बंधती हैं, गिनती में ये कर्मपरमाणु अनन्तानन्त हैं। संख्यात, असंख्यात, परोतानन्त, युक्तानन्त मात्र इतनो ही नहीं हैं । एक एक कार्मणवर्गणा में अनन्तानन्त परमाणुयें हैं । जघ य युक्तानन्तप्रमाण अभव्य राशि से अनन्तगुणे और सिद्धराशि के अनन्तवें भाग प्रमाण ऐसे वर्गणास्कन्ध अनन्तानन्त प्रतिक्षण वन्धते रहते हैं। भूतकाल के अनन्तानन्त समयों से असख्यातवें भाग प्रमाण सिद्धराशि है। पौने नो वर्ष कम अनादिकाल से सिद्धराशि एकत्रित हो रही है। जगत् में पौद्गलिक असंख्य पदार्थों की रचनायें परमाणुओं की न्यूनता, अधिकता से बन बैठती हैं। यदि कर्मबंध में प्रदेशों की गणना नहीं होती तो ज्ञानावरण आदि अनेक कार्यों को कर रहे अन्वर्थ संज्ञावाले भिन्न भिन्न कर्म नहीं बन पाते । अतः सूत्रकार ने चौथा प्रदेशवन्ध इस सूत्र में कह दिया हैं।
नाम्नः प्रत्यया नामप्रत्ययाः इत्युत्तरपदप्रधाना वृत्तिः । नामासां प्रत्यय इति चेन्न, समयविरोधात् । अन्यपदार्थायां हि वृत्तौ नामप्रत्ययो यासां प्रकृतीनामिति सर्व कर्मप्रकृतीनां नामहेतुकत्वं प्रसक्तं, तच्च समयेन विरुद्धयते। तत्र तासां तद्धेदुकत्वेनानभिधानात् प्रतिनियतप्रदोषाद्यास्रवनिमित्तत्वप्रकाशनात् ।
" नामप्रत्ययाः" इस पद में नाम के जो कारण हैं सो नामप्रत्यय हैं, इस प्रकार उत्तर पद के अर्थ को प्रधान रखने वालो तत्पुरुषसमास नाम की वृत्ति है। यदि यहां कोई यों कहे कि जिन प्रकृतियों का कारण नाम कर्म है इस प्रकार " नामप्रत्ययाः'' की अन्य पदार्थ को प्रधान रखनेवाली बहुव्रीहि समास नाम की वृत्ति कर ली जाय, बहुव्रीहि
और तत्पुरुष का प्रकरण मिलने पर प्रथम बहुव्रीहि को स्थान मिलता है। बहुत धान्य रखने वाले सेठ की उस पुरुष से अधिक प्रतिष्ठा है जो कि चाहे जिसका सेवक बन जाता