Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
कर्म की जघन्य स्थिति बारह मुहूर्त की कही जा रही है । अधुना के स्थानपर "अपरा" पाठ और भी अच्छा है। वेदनीय कर्म को उत्कृष्ट स्थिति तीस कोटाकोटी सागर कही गयो हैं, और जघन्य स्थिति बारह मुहूर्त की है। ऐसी दशा में विना कहे ही मात्र उक्त पदों के सामर्थ्य से यह बात भले प्रकार प्रतीत कर ली जाती है कि मध्य में पडे हुये बारह मुहूर्त से अधिक हो रहे एक, दो, तीन आदि समयों को आदि लेकर एक समय कम तीस कोटा कोटी सागर काल तक असंख्याती अनेक प्रकार की मध्यम स्थितियां हैं वेदनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति के समान जघन्य, मध्यम, स्थितियों की भी युक्तियों से सिद्धि कर ली जाय, बाधक प्रमाणों का असंभव होना यह हेतु सुबोध्य है । अतीन्द्रिय या गुप्त पदार्थों को " असभवद्वाधकत्वात्" इस ही एक हेतु से साध लिया जाता है।
अथायुषोनंतरयोः कर्मणोः का जघन्या स्थितिरित्याहः
अब इसके पश्चात् आयुष्य कर्म के अव्यवहित उत्तरवर्ती कहे गये नाम और गोत्र इन दो कर्मों की जघन्य स्थिति कितनी हैं ? इस प्रकार बुभुत्सा प्रवर्तने पर सूत्रकार महाराज अगले सूत्र को कह रहे हैं।
नामगोत्रयोरष्टौ ॥१९॥ नाम और गोत्र कर्मों की जघन्य स्थिति तो आठ मुहूर्त है “ सव्वठिदीणमुक्कस्सओदु उक्कस्ससंकिलेसेण, विवरीदेश जहण्णो आउगतिय वज्जियाणं तु" तीन आयुओं को छोडकर अन्य सभी कर्मों की जघन्य स्थिति तो संक्लेशरहित परिणामों से बंधती है अतः सबसे कमती मन्दकषाय को धार रहे दशवें गुणस्थान में ही जघन्य स्थिति पडेगी।
मुहूर्ता इत्यनुवर्तते अपरा स्थितिरिति च । सा च सूक्ष्मसांपराये विभाव्यते । तथाहि
अपरा, स्थिति ये पद और मुहूर्ता यों इन तीन पदों की अनुवृत्ति कर ली जाती है तब उक्त सूर्थि सुघटित हो जाता है । हाँ, वह नाम गोत्र कर्मों की जघन्य स्थिति सूक्ष्मसाँपराय नामक दशवें गुणस्थान में है यह विचार लिया जाता है । ग्रन्थ कार इस सूत्रोक्त रहस्य का ही व्याख्यान कर अग्रिम वार्तिक में स्पष्टीकरण करते हैं।
सा नामगोत्रयोरष्टौ मुहूर्ता इति वर्तनात् ।
यामादयो व्यवच्छिन्नाः कामं मध्येस्तु मध्यमा ॥१॥ मुहूर्ता इस शब्द की अनुवृत्ति कर देनेसे नाम और गोत्र कर्म की वह जघन्य