Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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अष्टमोध्यायः
( ८४
स्थिति आठ मुहूर्त की है यह सूत्र में कहा गया प्रतीत हो जाता हैं । मुहूर्त कह देने से पहर, दिन, वर्ष, घडी आदि का व्यवच्छेद कर दिया गया है। हां, आठ मुहूर्त से एक आदि समय अधिक बोस कोटाकोटीसागर तक मध्य में संभव रहीं प्रहर दिवस आदि असंख्याती मध्यमस्थितियां भले ही बनी रही, वे हमें इष्ट हैं । जघन्य और उत्कृष्ट स्थितियों का निरूपण कर चुकने पर मध्यम स्थितियां तो यथेच्छ निरूपित हो ही जाती हैं ।
अथोक्तेभ्योऽन्येषां कर्मणां का निकृष्टा स्थितिरित्याहः -
अब कहे जा चुके वेदनीय, नाम, गोत्र, कर्मों से अन्य शेष रहे पांच कर्मों को जघन्य स्थिति क्या है ? इस प्रकार जिज्ञासा प्रवर्तने पर सूत्रकार महाराज अग्रिम सूत्र को कह रहे हैं ।
शेषाणामतर्मुहूर्ता ॥ २० ॥
शेष में बच रहे ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय, मोहनीय और आयुष्य इन पांच कर्मों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त है । आवली से ऊपर और मुहूर्त से नीचे के काल को अन्तर्मुहूर्त कहते हैं ।
अपरा स्थितिरित्यनुवर्तते । शेषारिण ज्ञानदर्शनावरणान्तरायमोहनीयायूंषि । तत्र ज्ञानदर्शनावरणान्तरायाणां सूक्ष्मसांपराये मोहनीयस्यानिवृत्तिबादर सांपराये, आयुषः संख्येवर्षायुषतिर्यग्मनुष्येषु ।
अपरा और स्थिति इन दो शब्दों की यहां अनुवृत्ति कर ली जाती है । उक्त तीन कर्मों से शेष बच रहे ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय, मोहनीय और आयुः ये पांच कर्म हैं । तिनमें ज्ञानावरण, दर्शनावरण, और अन्तराय कर्मों की तो जघन्य स्थिति सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान में सम्भवती हैं और मोहनीय कर्म की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त वाली नवमे अनिवृत्तिबादरसांपराय नामक गुणस्थान में पडती है । दशवें गुणस्थान में मोहनीय
बंध ही नहीं हैं । हाँ, आयुकर्म को जघन्य स्थिति तो संख्यत वर्षों की आयुवाले तिर्यञ्च, मनुष्यों के पड सकती है । वे लब्ध्यपर्याप्तक जीव जन्म धारने की अवस्था में श्वास के अठारहवें भाग कालतक जीवित रहते हैं ।
सर्व कर्मणां स्थितिबंधमुपसंहरन्नाह ।
स्थितिबंध की समाप्ति करते हुये अब सम्पूर्ण कम के
स्थितिबन्ध का उप