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सूत्रकृताङ्गे भाषानुवादसहिते प्रथमाध्ययने प्रथमोदेशके गाथा २१-२३
परसमयवक्तव्यतायां अफलवादीत्वाधिकारः वस्तुतः क्षान्ति आदि, दश प्रकार का धर्म है, उस धर्म को जाने बिना ही वे अन्यदर्शनी दूसरे दूसरे धर्मों का कथन करते हैं । परन्तु उनके कहे हुए धर्म का कोई फल नहीं होता है इसलिए वे अफलवादी हैं, यह उद्देशक के अन्तिम ग्रन्थ के द्वारा शास्त्रकार बतलाते हैं- 'ये ते त्विति' यहाँ 'तु' शब्द 'च' शब्द के अर्थ में आया है, उसका प्रयोग 'ये' शब्द के पश्चात् करना चाहिए । इस प्रकार इसका अर्थ यह है कि- पूर्वोक्त मतों को माननेवाले वे नास्तिक आदि, संसार सागर को पार नहीं कर सकते हैं । यह श्लोक का अर्थ है ||२०||
ते णावि संधि णच्चा णं, न ते धम्मविओ जणा ।
जे ते उ वाइणो एवं, न ते संसारपारगा
।।२१।।
छाया - ते नाऽपि सन्धिं ज्ञात्वा, न ते धर्मविदो जनाः । ये ते तु वादिन एवं, न ते संसारपारगाः ॥
व्याकरण - (ते) सर्वनाम, अन्यतीर्थी का बोधक है (ण अवि) अव्यय (संधि) कर्म (णच्चा) क्रिया (ते धम्मविओ) जन का विशेषण (जणा) कर्ता (जे, ते) सर्वनाम, वादी का विशेषण (वाइणो) कर्ता (उ) अव्यय ( एवं ) अव्यय ( वाइणो ) कर्ता (संसारपारगा) वादी का विशेषण (न)
अव्यय ।
अन्वयार्थ - (ते) वे अन्यतीर्थी ( णावि संधि णच्चा) सन्धि को जाने बिना ही क्रिया में प्रवृत्त हैं। (ते जणा धम्मविओ ण) तथा वे, धर्म जाननेवाले नहीं हैं । (जे ते उ एवं वाइणो ) जो पूर्वोक्त सिद्धान्तों का प्रतिपादन करते हैं (न ते संसारपारगा) वे संसार को पार नहीं कर सकते हैं ।
भावार्थ - वे अन्यतीर्थी सन्धि को जाने बिना ही क्रिया में प्रवृत्त हैं। वे धर्म नहीं जानते हैं। तथा पूर्वोक्त सिद्धान्त को माननेवाले वे अन्यतीर्थी संसार को पार नहीं कर सकते हैं ।
ते णावि संधि णच्चा णं, न ते धम्मविओ जणा ।
जे
वाइणी एवं, न ते गब्भस्स पारगा
॥२२॥
छाया ते नाऽपि सन्धिं ज्ञात्वा न ते धर्मविदो जनाः । ये ते तु वादिन एवं, न ते गर्भस्य पारगाः || व्याकरण - पूर्ववत् ।
अन्वयार्थ - (ते) वे, (संधि) सन्धि को ( णावि) नहीं (णच्चा) जानकर क्रिया में प्रवृत्त हैं। (ते जणा) वे लोग (धम्मविओ) धर्म के ज्ञाता (न) नहीं हैं । जो (ते उ ) वे ( एवं) ऐसे (वाइणो) वादी हैं (ते) वे (न गब्भस्स पारगा) गर्भ को पार नहीं कर सकते हैं।
भावार्थ - वे अन्यतीर्थी सन्धि को जाने बिना ही क्रिया में प्रवृत्त हैं। तथा वे धर्मज्ञ नहीं हैं। एवं पूर्वोक्त मिथ्या सिद्धान्त को माननेवाले वे अन्यतीर्थी गर्भ को पार नहीं कर सकते हैं ||२२||
ते णावि संधिं गच्चा णं, न ते धम्मविओ जणा ।
ते वाइणो एवं, न ते जम्मस्स पारगा
॥२३॥
छाया - ते नाऽपि सन्धिं ज्ञात्वा, न ते धर्मविदो जनाः । ये ते तु वादिन एवं, न ते जन्मनः पारगाः ॥ व्याकरण - पूर्ववत् ।
अन्वयार्थ - (ते) वे, (संधि) सन्धि को ( णावि) नहीं (णच्चा) जानकर क्रिया में प्रवृत्त हैं। (ते जणा धम्मविओ न) और वे लोग धर्म ज्ञाता नहीं हैं । (जे ते उ एवं वाइणो) पूर्वोक्त प्रकार से मिथ्यासिद्धान्त की प्ररूपणा करनेवाले ( ते जम्मस्स पारगा न) जन्म को पार नहीं कर सकते हैं।
भावार्थ - वे अन्यतीर्थी सन्धि को जाने बिना ही क्रिया में प्रवृत्त हैं और वे धर्म को नहीं जानते हैं । पूर्वोक्त 1. अष्टप्रकारं कर्म चू० ।
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