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सूत्रकृताङ्गे भाषानुवादसहिते प्रथमाध्ययने तृतीयोद्देशके गाथा ९
छाया - ब्राह्मणाः श्रमणा एके आहुरण्डकृतं जगत् । असो तत्त्वमकार्षीच्चानानन्तो मृषा वदन्ति ॥
व्याकरण - ( एगे ) ब्राह्मण और श्रमण का विशेषण (माहणा) (समणा) (आह) क्रिया का कर्ता (जगे) कर्म (अंडकडे) जगत् का विशेषण ( असो) अकार्षीत् क्रिया का कर्ता ( तत्तं) कर्म ( अकासी) क्रिया (य) अव्यय ( अयाणंता) उक्तमतवादी का विशेषण, कर्ता ( मुसं) कर्म (वदे) क्रिया ।
अन्वयार्थ – (एगे) कोई (माहणा समणा) ब्राह्मण और श्रमण (जगे) जगत् को (अंडकडे) अंडे से किया हुआ (आह) कहते हैं (असो)
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उस (ब्रह्मा) ने (तत्तं) पदार्थ समूह को ( अकासी) बनाया (अयाणंता) वस्तुतत्त्व को न जाननेवाले वे (मुस) झुठ ही (वदे) ऐसा कहते हैं ।
परसमयवक्तव्यतायांजगत्कर्तृत्वखण्डनाधिकारः
भावार्थ – कोई ब्राह्मण और श्रमण कहते हैं कि यह जगत् अण्डे से किया हुआ है। तथा वे कहते हैं कि ब्रह्मा ने तत्त्व समूह को बनाया । वस्तुतः वे अज्ञानी वस्तुतत्त्व को न जानते हुए मिथ्या ही ऐसा कहते हैं ।
टीका ब्राह्मणा धिग्जातयः श्रमणाः त्रिदण्डिप्रभृतयः 'एके' केचन पौराणिका न सर्वे, एवम्, 'आहु'रुक्तवन्तो, वदन्ति च यथा- जगदेतच्चराचरमण्डेन कृतमण्डकृतमण्डाज्जातमित्यर्थः । तथाहि ते वदन्ति यदा न किञ्चिदपि वस्त्वासीत् पदार्थशून्योऽयं संसारस्तदा ब्रह्माऽप्सु अण्डमसृजत् तस्माच्च क्रमेण वृद्धात् पश्चाद् द्विधाभावमुपगतादूर्ध्वाधोविभागोऽभूत् । तन्मध्ये च सर्वाः प्रकृतयो ऽभूवन्, एवं पृथिव्यप्तेजोवाय्वाकाशसमुद्रसरित्पर्वतमकराकरसंनिवेशादिसंस्थितिरभूदिति । तथा चोक्तम्
“आसीदिदं तमोभूतमप्रज्ञातमलक्षणम् । अप्रतर्क्यमविज्ञेयं, प्रसुप्तमिव सर्वतः ||१||” एवम्भूते चाऽस्मिन् जगति असौ ब्रह्मा, तस्य भावस्तत्त्वं पदार्थजातं तदण्डादिक्रमेण अकार्षीत् कृतवान् इति। ते च ब्राह्मणादयः परमार्थमजानानाः सन्तो मृषा वदन्त एवं वदन्ति - अन्यथा च स्थितं तत्त्वमन्यथा वदन्तीत्यर्थः ॥८॥ टीकार्थ • ब्राह्मण अर्थात् धिग्जाति तथा त्रिदण्डी आदि श्रमण एवं सब नहीं किन्तु कोई-कोई पौराणिक कहते हैं कि यह चराचर जगत् अण्डे से उत्पन्न हुआ है । वे कहते हैं कि जिस समय इस जगत् में कुछ भी नहीं था किन्तु यह संसार पदार्थ से शून्य था, उस समय ब्रह्मा ने जल में एक अण्डा उत्पन्न किया । वह अण्डा क्रमशः बढ़ता हुआ जब दो खण्डों में फट गया, तब उससे ऊपर और नीचे के दो विभाग उत्पन्न हुए। उन दोनों विभागों में सब प्रजायें उत्पन्न हुई । इसी तरह पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, समुद्र, नदी और पर्वत आदि की उत्पत्ति हुई। तथा उन्होंने कहा है
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( आसीदिदम् ) अर्थात् सृष्टि के पहले यह जगत् अन्धकार रूप, अज्ञात और लक्षण रहित था । उस समय यह जगत् तर्क का अविषय तथा अज्ञेय और चारों ओर से सोया हुआ-सा था। ऐसी अवस्था में ब्रह्मा ने अण्डा आदि के क्रम से इस समस्त जगत् को बनाया । इस प्रकार परमार्थ को न जानने वाले वे ब्राह्मण आदि झुठ ही इस जगत् को ब्रह्मा से किया हुआ बतलाते हैं । वस्तुतत्त्व तो ओर तरह का है, परन्तु वे उसे ओर तरह का बतलाते हैं । यह इस गाथा का अर्थ है ||९||
अधुनैतेषां देवोप्तादिजगद्वादिनामुत्तरदानायाऽऽह
अब सूत्रकार, जगत् को देवता द्वारा किया हुआ आदि सिद्धान्तों को माननेवाले दार्शनिकों को उत्तर देने के लिए कहते हैं
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सएहिं परियाएहिं, लोयं बूया कडेति य ।
तत्तं तेण विजाणंति, ण विणासी कयाइवि
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छाया - • स्वकैः पर्यायैर्लोकमब्रुवन् कृतमिति च । तत्त्वं ते न विजानन्ति न विनाशी कदाचिदपि ॥
व्याकरण - (सएहिं ) पर्याय का विशेषण (परियाएहिं ) हेतु तृतीयान्त (लोयं) कर्म (बुया) क्रिया (कडे) लोक का विशेषण (इति य) अव्यय (तत्तं ) कर्म (ते) कर्ता का विशेषण सर्वनाम (ण) अव्यय (विजाणंति) क्रिया (ण) अव्यय (कयाइवि) अव्यय (विणासी) लोक का विशेषण ।