Book Title: Sutrakritanga Sutra Part 01
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 320
________________ सूत्रकृताङ्गे भाषानुवादसहिते चतुर्थाध्ययने द्वितीयोदेशके: गाथा ५-६ दारूणि सागपागाए, पज्जोओ वा भविस्सती राओ । पाताणि य मे रयावेहि, एहि ता मे पिट्ठओमद्दे 11411 छाया - दारुणि शाकपाकाय, प्रद्योतो वा भविष्यति रात्री पात्राणि च मे रञ्जय एहि तावन्मे पृष्ठं मर्द्दय । अन्वयार्थ - ( सागपागाए) शाक पकाने के लिए (दारुणि) लकडी लाओ (पज्जोओ वा भविस्सति) रात में प्रकाश के लिए तेल आदि लाओ ( मे पाताणि रयावेहि) मेरे पात्रों को अथवा पैर को रंग दो (एहि ) आओ (ता मे पिट्ठओमद्दे) मेरी पीठ में मालिश कर दो । भावार्थ - हे साधो ! शाक पकाने के लिए लकड़ी लाओ, रात में प्रकाश के लिए तेल लाओ। मेरे पात्रों को अथवा मेरे पैरों को रँग दो । इधर आ कर मेरी पीठ में मालिश कर दो । स्त्रीपरिज्ञाध्ययनम् टीका - तथा 'दारुणि' काष्ठानि, शाकं टक्कवस्तुलादिकं पत्रशाकं तत्पाकार्थं, क्वचिद्, अन्नपाकायेति पाठः, तत्रान्नम् - ओदनादिकमिति, 'रात्रौ' रजन्यां प्रद्योतो वा भविष्यतीतिकृत्वा, अतो अटवीतस्तमाहरेति, तथा - ( ग्रन्थाग्रम् ३५००) 'पात्राणि' पतद्ग्रहादीनि 'रञ्जय' लेपय, येन सुखेनैव भिक्षाटनमहं करोमि, यदिवा - पादावलक्तकादिना रञ्जयेति, तथा-परित्यज्यापरं कर्म तावद् 'एहि' आगच्छ 'मे' मम पृष्ठम् उत्-प्राबल्येन मर्दय, बाधते ममाङ्गमुपविष्टाया अतः संबाधय, पुनरपरं कार्यशेषं करिष्यसीति ॥५॥ किञ्च - टीकार्थ हे साधो ! शाक अर्थात् टक्क वस्तुल (वथुआ) आदि पत्रशाक पकाने के लिए लकडी लाओ। कहीं ‘“अन्नपाकाय” यह पाठ है अर्थात् भात आदि अन्न पकाने के लिए अथवा रात में प्रकाश करने के लिए जङ्गल से लकडी लाओ। मेरे पात्रों को रँग दो जिससे मैं सुखपूर्वक भिक्षाटन करूंगी। अथवा मेरे पैरों को महावर से रँग दो । दूसरे कामों को छोड़कर इधर आकर मेरी पीठ मालिश कर दो, बैठे-बैठे मेरे अगों में दर्द हो गया है, इसलिए पहले मेरे अङ्गों का मर्द्दन करो, पीछे दूसरा कार्य्य करना ||५|| वत्थाणि य मे पडिलेहेहि, अन्नं पाणं च आहराहित्ति । 'गंधं च रओहरणं च, कासवगं च मे समणुजाणाहि ॥६॥ छाया - वस्त्राणि च मे प्रत्युपेक्षस्व, अनं पानं च आहर इति । गव्यं च रजोहरणं च काश्यपं च मे समनुजानीहि ॥ अन्वयार्थ - ( वत्याणि य मे पडिलेहेहि ) हे साधो ! मेरे वस्त्र पुराने हो गये हैं इसलिए दूसरे नये कपड़े लाओ । अथवा मेरे कपड़े मैले हो गये हैं, उन्हें धोबी को दे दो । अथवा मेरे कपड़ों की सम्हाल करो, जिससे चूहे न खायें (अन्नं पाणं च आहराहित्ति) मेरे लिए अन्न और जल माँग लाओ (गंधं रयोहरणं च ) मेरे लिये कपूर आदि सुगन्ध पदार्थ और रजोहरण लाओ (मे कास्सवं समणुजाणीहि) मैं लोच की पीड़ा नहीं सह सकती हूँ, इसलिए मुझको नाई से बाल कटाने की आज्ञा दो । भावार्थ - हे साधो ! मेरे कपड़े पुराने हो गये हैं, इसलिए मुझको नये कपड़े लाकर दो, मेरे लिए अन्न और जल लाओ । तथा गन्ध और रजोहरण लाकर मुझको दो । में लोच की पीड़ा नहीं सह सकती हूँ इसलिए मुझको नाई से बाल कटाने की आज्ञा दो । टीका 'वस्त्राणि च अम्बराणि मे' मम जीर्णानि वर्तन्तेऽतः 'प्रत्युपेक्षस्व' अन्यानि निरूपय, यदिवामलिनानि रजकस्य समर्पय, मदुपधिं वा मूषिकादिभयात्प्रत्युपेक्षस्वेति, तथा अन्नपानादिकम् 'आहर' आनयेति, तथा 'गन्धं' कोष्ठपुटादिकं ग्रन्थं वा हिरण्यं तथा शोभनं रजोहरणं तथा लोचं कारयितुमहमशक्तेत्यतः 'काश्यपं' नापितं मच्छिरोमुण्डनाय श्रमणानुजानीहि येनाहं बृहत्केशानपनयामीति ||६|| किञ्चान्यत् - टीकार्थ मेरे कपड़े पुराने हो गये हैं, इसलिए दूसरे कपड़े मुझको ला दो । अथवा मेरे कपड़े मैले हो गये हैं, इन्हें धोबी को दे दो, अथवा हमारे वस्त्र आदि उपकरणों को चूहों के भय से बचाकर रखो । मेरे लिए अन्न-पान आदि लाओ । तथा कोष्टपुट आदि गन्ध अथवा ग्रन्थ, यानी सोना-चाँदी मेरे लिए लाओ । मुझे सुन्दर 1. गंथं इति स्यात्पाठान्तरम् । -

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