Book Title: Sutrakritanga Sutra Part 01
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 256
________________ सूत्रकृताङ्गेभाषानुवादसहिते तृतीयाध्ययने तृतीयोद्देशकेः गाथा ११-१२ एवं तुब्भे पभासंता, दुपक्खं चेव सेवह ।।११।। छाया - अथ तान् परिभाषेत, भिक्षुर्मोक्षविशारदः । एवं यूयं प्रभाषमाणाः दुष्पक्षं चैव सेवध्वम् ॥ अन्वयार्थ - (अह) इसके पश्चात् (मोक्खविसारए) मोक्षविशारद अर्थात् ज्ञान - दर्शन और चारित्र की प्ररूपणा करनेवाला (भिक्खु) साधु (ते) उन अन्यतीर्थियों से (परिभासेज्जा) कहे कि ( एवं ) इस प्रकार ( पभासंता) कहते हुए (तुब्बे) आपलोग (दुपक्खं) दो पक्ष का (सेवह) सेवन करते हैं । भावार्थ - अन्यतीर्थियों के पूर्वोक्त प्रकार से आक्षेप करने पर मोक्ष की प्ररूपणा करने में विद्वान् मुनि उनसे यह कहते कि - इस प्रकार जो आप आक्षेपयुक्त वचन कहते हैं इससे आप असत्पक्ष का सेवन करते हैं । टीका 'अथ' अनन्तरं 'तान्' एवं प्रतिकूलत्वेनोपस्थितान् भिक्षुः 'परिभाषेत्' ब्रूयात् किम्भूतः ? 'मोक्षविशारदो' मोक्षमार्गस्य - सम्यग्दर्शनचारित्ररूपस्य प्ररूपकः, 'एवम्' अनन्तरोक्तं यूयं प्रभाषमाणाः सन्तः दुष्टः पक्षो दुष्पक्षः असत्प्रतिज्ञाभ्युपगमस्तमेव सेवध्वं यूयं यदिवा रागद्वेषात्मकं पक्षद्वयं सेवध्वं यूयं, तथाहि सदोषस्याप्यात्मीयपक्षस्य समर्थनाद्रागो, निष्कलङ्कस्याप्यस्मदभ्युपगमस्य दूषणाद्वेषः, अथै (थवै) वं पक्षद्वयं सेवध्वं यूयं तद्यथा वक्ष्यमाणनीत्या बीजोदकोद्दिष्टकृतभोजित्वाद्गृहस्थाः यतिलिङ्गाभ्युपगमात्किल प्रव्रजिताश्चेत्येवं पक्षद्वयासेवनं भवतामिति, यदिवा – स्वतोऽसदनुष्ठानमपरं च सदनुष्ठायिनां निन्दनमितिभावः ॥ ११ ॥ उपसर्गाधिकारः - - - २१६ - टीकार्थ - इसके पश्चात् पूर्वोक्त प्रकार से प्रतिकूल होकर उपस्थित होते हुए उन अन्यतीर्थियों से साधु पुरुष यह कहे कि वह साधु पुरुष कैसा है? "मोक्षविशारदः" अर्थात् सम्यग्ज्ञान, दर्शन और चारित्ररूप मोक्ष मार्ग की प्ररूपणा करनेवाला है । वह कहे कि पूर्वोक्त प्रकार से भाषण करने वाले आप लोग असत् पक्ष का सेवन करते हैं अर्थात् आप असत् प्रतिज्ञा को स्वीकार करते हैं । अथवा आप राग और द्वेषरूप दो पक्षों का सेवन करते हैं क्योंकि आपका पक्ष दोष सहित है तथापि आप उसका समर्थन करते हैं । इसलिए आपको अपने पक्ष में राग है और हमारा सिद्धान्त कलङ्क रहित है तथापि आप उसे दूषित बतलाते हैं । इसलिए आपका उस पर द्वेष है अथवा आप लोग इस प्रकार दो पक्षों का सेवन करते हैं जैसे कि आप लोग बीज, कच्चा पानी और उद्दिष्ट आहार का सेवन करने के कारण गृहस्थ हैं और साधु का वेष रखने के कारण साधु हैं । इस प्रकार आप लोग दो पक्षों का सेवन करते हैं । अथवा आप लोग स्वयं असत् अनुष्ठान करते हैं और सत् अनुष्ठान करने वाले दूसरों की निन्दा करते हैं । इसलिए आप लोग दो पक्षों का सेवन करते हैं, यह आशय है ||११|| - आजीविकादीनां परतीर्थिकानां दिगम्बराणां चासदाचारनिरूपणायाह आजीविक आदि तथा दिगम्बर आदि परतीर्थियों के असत् आचार का निरूपण करने के लिए शास्त्रकार कहते हैं तुब्भे भुंजह पाएसु, गिलाणो अबिहडंमि या । तं च बीओदगं भोच्चा, तमुद्दिसादिजं कडं ।।१२।। छाया - यूयं भुग्ध्वं पात्रेषु ग्लान अभ्याहृते यत् । तच्च बीजोदकं भुक्त्वा तमुद्दिश्यादियत्कृतम् ॥ अन्वायार्थ - (तुब्मे) आप लोग ( पाएसु) कांसा आदि के पात्रों में (भुंजह ) भोजन करते हैं तथा (गिलाणो) रोगी साधु के लिए (अबिहडं या) गृहस्थों के द्वारा जो भोजन मंगाते हैं (तं च बीओदगं) सो आप बीज और कच्चे जल का ( भोच्चा) उपभोग (तमुद्दिसादि जं कडं ) तथा उस साधु के लिए जो आहार बनाया गया है, उसका उपभोग करते हैं । भावार्थ - आपलोग कांसा आदि के पात्रों में भोजन करते हैं तथा रोगी साधु को खाने के लिए गृहस्थों के द्वारा आहार मंगाते हैं। इस प्रकार आपलोग बीज और कच्चे जल का उपभोग करते हैं तथा आप उद्देशिक आदि आहार भोजन करते हैं ।

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