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सूत्रकृताङ्गेभाषानुवादसहिते चतुर्थाध्ययने प्रथमोद्देशकः गाथा २१
स्त्रीपरिज्ञाध्ययनम् यहां स्त्री का स्वभाव जानने के लिए यह कथानक है ।।
एक युवा पुरुष वैशिक कामशास्त्र अर्थात् स्त्री के स्वभाव को बतानेवाले शास्त्र को पढ़ने के लिए अपने घर से निकलकर पटना जाने लगा । बीच मार्ग में किसी ग्राम में रहनेवाली किसी स्त्री ने कहा कि तुम्हारे हाथ पैर सुकुमार हैं और तुम्हारी आकृति भी सुंदर है, तुम कहां जा रहे हो? उस युवक ने भी सच्ची बात उस स्त्री से कह सुनायी । इसके पश्चात् उस स्त्री ने कहा कि वैशिक कामशास्त्र को पढ़कर इधर से ही आना, युवक ने भी यह स्वीकार किया । वैशिक कामशास्त्र. पढ़कर वह युवक उस स्त्री के मार्ग से ही आया, उस स्त्री ने उस पुरुष को स्नान, भोजन आदि के द्वारा अच्छी तरह सेवा की । तथा अपने हावभाव कटाक्षों से उसका मन हर लिया उस पुरुष ने उस स्त्री पर आसक्त होकर ज्योंही उसका हाथ पकड़ना चाहा, त्योंही वह जोर से चिल्लाती हुई लोगों के आने का अवसर देखकर उसके शिर पर जल का घड़ा डाल दिया। इसके पश्चात् लोगों की भीड़ होने पर वह इस प्रकार कहने लगी कि - इनके गले के अंदर पानी लग गया था, इससे इनके मरने में थोड़ी कसर रह गयी थी, यह देखकर मैंने इनको जल से नहला दिया । जब लोग सब चले गये तब वह पूछने लगी कि वैशिक कामशास्त्र को पढ़कर तुमने स्त्री स्वभाव का क्या ज्ञान प्राप्त किया है? वस्तुतः स्त्री चरित्र दुर्विज्ञेय होता है, इसलिए मनुष्य को स्त्री के स्वभाव पर विश्वास नहीं करना चाहिए। कहा भी है कि -
स्त्रियों के हृदय में अन्य होता है और वाणी में अन्य होता है, सामने अन्य होता है और पीछे अन्य होता है, तुम्हारे लिये अन्य होता है और मेरे लिये अन्य होता है वस्तुतः स्त्रियों का सब कुछ अन्य ही होता है ॥२०॥
- साम्प्रतमिहलोक एव स्त्रीसम्बन्धविपाकं दर्शयितुमाह - ___ - अब इसलोक में ही स्त्री संबंधी विपाक को दिखाने के लिए कहते हैअवि हत्थपादछेदाए, अदुवा वद्धमंसउक्कंते । अवि तेयसाभितावणाणि, तच्छिय खारसिंचणाई च
॥२१॥ छाया - अपि हस्तपादच्छेदाय, अथवा वर्धमांसोत्कर्तनम् ।
अपि तेजसाऽभितापनानि तक्षयित्वा क्षारसिशनानि च ॥ अन्वयार्थ - (अवि हत्थपादछेदाए) इस लोक में परस्त्री के साथ सम्पर्क करना हाथ और पैर का छेदन रूप दण्ड के लिए होता है (अथवा वद्धमंसउक्कते) अथवा चमडा और मांस को कतरना रूप दंड के लिए होता है , (अवि तेयसाभितावणाणि) अथवा आग से जलाने रूप दण्ड के लिए होता है (तच्छियखारसिंचणाई च) एवं अंग का छेदन करके खार द्वारा सींचने रूप दण्ड के लिए होता है।
भावार्थ - जो लोग परस्त्री सेवन करते हैं, उनके हाथ पैर काट लिये जाते हैं, अथवा उनका चमड़ा और मांस काट लिया जाता हैं, तथा अग्नि के द्वारा वे तपाये जाते हैं एवं उनका अंग काट कर खार के द्वारा सिंचन किया जाता है।
टीका - स्त्री सम्पर्को हि रागिणां हस्तपादच्छेदाय भवति, 'अपिः' सम्भावने सम्भाव्यत एतन्मोहातुराणां स्त्रीसम्बन्धाद्धस्तपादच्छेदादिकम्, अथवा वर्धमांसोत्कर्तनमपि 'तेजसा, अग्निना 'अभितापनानि'स्त्रीसम्बन्धिभिरुत्तेजित राजपुरुषैर्भटित्रकाण्यपि क्रियन्ते पारदारिकाः, तथा वास्यादिना तक्षयित्वा क्षारोदकसेचनानि च प्रापयन्तीति ॥२२॥ अपि च
टीकार्थ - परस्त्री का संसर्ग, रागी पुरुषों के हाथ पैर को छेदने के लिए होता है। अपि शब्द सम्भावना अर्थ में आया है, परस्त्री में मोहातुर पुरुषों के हाथ और पैर का छेदन संभव है । अथवा परस्त्री लंपट पुरुष का चर्म और मांस भी कतरा जाना संभव है, तथा स्त्री के स्वजनवर्ग द्वारा उत्तेजित किये हुए राजपुरुष, पारदारिकों को भट्ठीपर चढ़ाकर भी तपाते हैं, एवं वसूला आदि के द्वारा उसे छिलकर उस पर खार जल का सिंचन भी करते हैं।॥२१॥
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