Book Title: Setubandha
Author(s): Krishnakant Handiqui
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 647
________________ 154 SETUBANDHA स्ताम्. Kula says सदासंस्थितात् वदनात् विसंवादितम् आकृष्टम्. SC says सदासंस्थितादर्थात् करतलनिलीनात् वदनात्. R says विसंवादितं स्खलितम्. 40. K and MY read एक for addha (R). K says स्वहस्तशब्देन अभिज्ञानद्रव्यमुच्यते । तथा विक्रमोर्वशीये राजा - वासार्थ हर संभृतं सुरभिणा पौष्पं रजो वीरुधां किं मिथ्या भवतो हृतेन दयितास्नेहस्वहस्तेन मे। जानीते हि मनोविनोदनफलैरवंविधंधारितं कामातं जनमञ्जनां प्रति भवानालक्षितप्रार्थनः ।। इति । प्रियतमाय स्वहस्तत्वेन प्रेषितेन चूडामणिना शून्यीकृतशिथिलैकवेणीबन्धां, धौतकलधौतं विशुद्धरजतं तद्वत् पाण्डरैः पतद्भिः बाष्पैः आहतोन्नतस्तनकलशाम्. SC Text has pandara for pandura (R). MY says प्रियतमं प्रति स्वहस्ततया प्रेषितेन मणिना शून्यीकृतः शिथिलश्चैकीभूतो वेणीबन्धो यस्यास्ताम्. Kula reads मणिवर for मणि, and वेणी for addha-vent (R). cf. sc Text. ___41. K, MY and Kula pratika has aamia for ajamia (R). K (chaya) has धूसरदीर्घतरालकावस्तृतमुखीं .... परित्यक्तमण्डनार्पितलावण्याम्. K says अयमितत्वात् असंस्कृतत्वात् पक्ष्मलवेणी, पक्ष्मशब्देन केशाग्राण्युच्यन्ते, केशाप्रैबेहुलवेणीम् । धूसरै रजोबहुलैः दीर्घतरैरलकैः छादितमुखीम् । रशनाशून्यनितम्बां, परित्यक्तमण्डनत्वेऽपि पुञ्जितलावण्यां प्रकाशितकान्तिविशेषाम, MY says अयमितत्वादेव पक्ष्मला उच्छ्वासितकेशान्ता वेणी यस्यास्ताम् । धूसरितदीर्घतरालकावस्थगितमुखी', विच्छर्दितेन विगलितेन मण्डनेन स्थितसहजलावण्यां छादकाभावादित्याशयः. K and MY seem to read dhūsaria diha-arolaotthaia-muhim for baha-jala-pahaviao (R). Kula's reading is same as R's, but he says बाष्पजलावमलिनितेन अलकेनावस्थगितं मुखं यस्याः (ताम्). He reads अवमलिनित (omarlia, 1 Our copy has अवस्थितमुखीं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |

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