Book Title: Setubandha
Author(s): Krishnakant Handiqui
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 669
________________ 176 SETUBANDHA R says संमुखमिलितमपि रूपं घटादिस्वरूपं यदा न गृह्णाति. 11. K and Kula read प्रविद्ध for painma = प्रकीर्ण (R) K and MY read रजोनिकरच्छन्न for nisaarocchunna = निशाचरावक्षुण्ण (R). K reads प्रलुठत् (balotkantam) for ( paholantam) = प्रघूर्णमानम् (R and Kula). MY's reading is same as K's. K says ततो भ्रमता मारुतेन विषमविक्षिप्तरलकैः उन्मृष्टबाष्पजला सा रजोनिकरच्छन्ने पांसुनिवहेन छन्ने महीतले .... प्रलठत् राघवमुखं पश्यति स्म. MY says raa-niara-cchanna-mahi-ala- palotantam रजोनिकरच्छन्ने महीतले प्रस्फुरत् रामशिरः. . Kula says राघववदनं (निशाचरैः ?) छिन्नं महीतले प्रपूर्णमानम्. He reads occhinna for occhunna (अवक्षुण्ण). sc says तत्कालछिन्नमिव । विचेष्टमानम्. 112. K says तस्या दृष्टिदर्शनक्रिया बाष्पेण धाव्यते क्षाल्यते स्म विशदीकृता (MY also) । न पुनर्बाष्पप्रसरेण रुध्यते स्म । बाष्पश्च प्रवहत्येव । दृष्टिश्च रामवदनमेव पश्यति स्म.. __MY says दृष्टिः दर्शनक्रिया तारका वा. SC says अत्र नयनं तारका, दृष्टिः नेत्रमिति श्रीनिवासः. K says अभ्यधिकोन्मीलितनिश्चलस्थितनयनसन्निवेशा, रामशिरसि बद्धलक्षा तस्या दृष्टिः. ____113. K reads निर्भरनयनं for nisaraccham = निःसाराक्षम् (R) and Kula), and विलोकितं (pulaiam) for vihasiam (R and Kula). K says तत् रामवदनं चिरं दृष्ट्वा ततः पुनः मरणैकरसया मरणैकरागया मरणैकनिश्चयया, त्रिजटागतनयना तया मरिष्यन्ती माम् आपृच्छस्व आभाषस्व इत्युक्ता बाष्पनिर्भरनयनं दीनं विलोकितं दर्शनं कृतम्. MY says avucchasu आपृच्छस्व । आप्रश्नश्च प्रस्थातुकामस्य जनस्य संभाषणादिरिति. Kula reads आपृच्छ इति ie, auchami tti (cf. SC Text) for succhasu' mam ti (आपृच्छस्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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