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भाइयों ने बुलवाया। वास्तव' में चामलदेवी और बोपदेवी चलना चाहती थी। सिर्फ पद्मलदेवी वही पुरानी पाचला हो रही। इस बार चामलदेवी और बोपदेया भाइयों के साथ रवाना हो गयीं। पद्मलदेवी अकेली ही वहाँ रह गयी थी। उसके मन का परिवर्तन किसी से भी हो न सका।
__मरियाने दण्डनायक की मृत्यु का समाचार मिलते ही राजमहल से स्वहस्ताक्षर युक्त एक पत्र पालदेवी के पास भेजा गया। उसमें राजमहल ने मृत्यु पर शोक प्रकट किया था और मृत आत्मा की शान्ति चाहते हुए तीनों रानियों को राजधानी में अपने ही राजमहल आकर रहने का आग्रह किया गया था। साथ ही, यहाँ राजमहल में रहकर मार्गदर्शन देते रहने की विनती की गयी थी। पालदेवी इस पत्र से भी कुछ अपार्थ की कल्पना करके जिद पकड़े बैठी रही। अकेली ही वहाँ रही आयी। अब उसे किसी की परवाह नहीं थी। पिता भी छोड़कर चल बसे। बहनें भी दूर चली गयीं। ऐसी दशा में अब वह अपनी इच्छा अनुसार, बिना किसी रोक-रुकावट के जीवन व्यतीत कर सकती है-ऐसा ही कुछ उसने सोच लिया था।
बड़े दण्डनायक जब जीवित रहे, तीनों रानियों के लिए सभी तरह की सुविधाएँ प्राप्त होती रहीं। वही क्रम अब भी ज्यों-का-त्यों चल रहा था। इतना ही नहीं, बल्लाल महाराज के विवाह के समय मरियाने दण्डनायक को पुरस्कार के रूप में जो भी दिया गया था, उस सबका उपभोग रानी पद्मलदेवी ही आजीवन करें-ऐसी व्यवस्था माचण, डाकरस, रानी चामलेदयी, रानी बोपदेवी सबकी सहमति से की गयी थी। इन सबकी प्रतिक्रिया जो भी रही हो, राजमहल की ओर से क्रम के अनुसार जो उन्हें भेजा जाता सो यथावत भेजा जाता ही रहा। और सभी विशिष्ट कार्यों के अवसरों पर आदर के साथ उनके पास आमन्त्रण भी भेज दिया जाता रहा।
पहले एचलदेवी की सबीयत जब बहुत बिगड़ गयी थी तब भी उनके पास खबर भेजी गयी थी। फिर उसी तरह का एक पत्र पालदेवी के पास पहुँचा।
पत्रवाहक हरकारे ने कहा, "इस बार महापातश्री का स्वास्थ्य बहुत चिन्ताजनक है। उन्होंने रानी को देखने की बलवती इच्छा प्रकट की है, इसलिए कहीं रुके बिना मैं पत्र लेकर सीधा चला आया।"
"मुझ अकेली के लिए यह आह्वान है?"
"मुझे यह सब मालूम नहीं। मुझको यहाँ भेजा है। महामातृश्श्री जिन-जिनको देखना चाहती हैं, उन सभी को बुलवाती हैं।'
"रानी चामलदेवी और रानी बोप्मदेवी के पास भी बुलावा गया होगा?" "वे तो वास्तव में यादवपुरी में ही थीं।" "तो उन्हें पहले ही खबर दी जा चुकी थी?"
28 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन