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कारण हमारे प्राण बचे । सन्निधान के सानिध्य में रहने की उनकी इच्छा पूरी न करें तो उसका कुछ और ही माने हो सकता है। 'काम बन गया अब हमें कूड़े से भी नीच समझने लगे'-यही तो कहेंगे। ऐसा समझना राष्ट्रहित के लिए ठीक न होगा। वास्तव में मंचि दण्डनाथ का बल हमारे लिए बहुत बड़ा बल है। इसका भी निर्णय देवी से चर्चा करने के बाद ही किया गया है। माँ, हमारी बातों पर आपको विश्वास न हो तो आप भी हमारे साथ यादवपुरी चलिएगा!"
"मैं तुम पर पहरा देती रहूँ, यह हो सकता है ? अब मैं अन्यत्र कहीं नहीं जाऊँगी। मेरा शेष जीवन यहीं यगची के ही तीर पर समाप्त होगा। मैं जो कहना चाहती थी सो सब कह चुकी। आगे जो करना हो सो तुम्हारे हाथ है। मन की सारी बातें कह चुकने के बाद अब चिन्ता करते रहने की कोई बात ही नहीं रही। अब तुम्हारी मर्जी है; हाथ पसारकर आह्वान देनेवाली स्त्री हो तो इनकार करना पुरुष के लिए क्लिष्ट कार्य है। मोह का यह खिंचाव है; प्रज्ञ जनों के अनुभव की बात है, इसलिए अपनी बुद्धि को अपने वश में रखने की जिम्मेदारी तुम्हारी है।"
"माँ! पल्लव राजकुमारी ऐसी नहीं। सान्निध्य के ऐसे कई मौके थे। मगर राजकुमारी ने अवसर का दुरुपयोग कभी नहीं किया। उनसे ऐसा व्यवहार कभी देखने को नहीं मिला।"
"ऐसा है तो योग्य वर की खोज करके ग़जमहल की ही ओर से विवाह करवाकर जल्दी उस कन्या-यम से उन्हें जरा । गो लिए हितमा
"हाँ, माँ, वही करूँगा। यादवपुरी पहुँचते ही मंचि दण्डनाथ को बुलवाकर बातचीत करूँगा।"
"इस बारे में मुझे एक समाचार सुनने को मिला है। उसका विवरण मालूम नहीं। राजकुमारी जिसे वरना चाहती है उन्हें उसने मन में चुन लिया है । विवाह करना हो तो उन्हीं से करेगी, नहीं तो आजीवन कुमारी ही बनकर रहेगी-यही सुनने में आया है।
बिट्टिदेव हंस पड़े। "क्यों, इसमें हँसने को कौन-सी बात है?"
''राजकुमारी सुन्दर है। धैर्यशालिनी है, बुद्धिमती भी है। मर्यादित व्यवहार करने की शक्ति रखती हैं। अगर वह अभिलाषा करे तो इनकार कर सकनेवाला पुरुष कौन होगा? खैर, इस बात को रहने दें। यह बताएँ कि वह कौन है जिसे उसने मन में वर लिया है?"
"मुझे मालूम नहीं।" "देवी से कह दें तो पता लगा देंगी।''
26 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन