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किया है कि राजनीतिक सहूलियतों की दृष्टि से दूसरे विवाह आवश्यक हैं। यदि कभी ऐसे राजनीतिक दबाव के कारण झुकना भी पड़े तो वह केवल राजनीतिक समझौता ही होगा, वह सच्चे प्रेम का प्रतीक दाम्पत्य न होगा...'
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बिट्टिदेव कह ही रहे थे कि एचलदेवी उसे रोककर बोली, "छोटे अप्पाजी ! आज क्षणिक दिखनेवाली अभिलाया कल धड़ जमा ले, तो यह राजनीतिक समझौता एक बहाना मात्र हो जाएगा। यह असम्भव नहीं। अब इस प्रसंग में उस दिन की उस प्रतिज्ञा की याद दिलाती हूँ जिसे मैंने बलिपुर में सम्पन्न तुम्हारे जन्मदिन के अवसर पर शान्तला से करायी थी । उसका लक्ष्य तुम दोनों के पारस्परिक प्रेम के बीच कभी कोई विरस न आने पावे – यही था। अब तक इस लक्ष्य से युक्त उसका पालन होता आया है। अपनी आँखों से उस प्रतिज्ञा को विफल होते देखना मुझसे सहा न जाएगा। मेरे अन्तरंग में जो दुःख होगा उसे मैं सह लूँगी। अम्माजी का दिल दुखे, मैं इसे सह ही नहीं सकती। अप्पाजी का जीवन क्या से क्या हो गया — इस बात को तो तुम जानते ही हो। इसलिए तुम दूसरा विवाह न करो यही इच्छा है। वहीं भूषण है। राजा की अनेक पत्नियाँ हो सकती हैं। अनेक पलियों का होना एक भूषण है- इस बात को प्रोत्साहन देनेवाले लोग हैं, ऐसा समाज भी है। तुम्हें इनके आगे झुकना नहीं चाहिए। यह मेरी विनती हैं। "
"माँ, आप हमसे विनती करें ? हम जो भी करेंगे, उस पर देवी की सम्मति रहेगी ही। उसकी जानकारी के बिना, उसकी सम्मति के बिना हम कुछ भी नहीं करते।'
"छोटे अप्पाजी ! तुम्हारी आकांक्षाओं को सफल बनाने के लिए वह अपनी आन्तरिक वेदना स्वयं चुपचाप पीती रहे और उसे बताये बिना ऊपर से हँसमुख हो सम्मति सूचित करे तो तुमको उसका अन्तरंग कैसे मालूम पड़ेगा ?"
"माँ! वह कभी कोई बात हमसे छिपाएगी नहीं। हमें यह भरोसा और विश्वास है। आज हम जो कुछ भी बने हैं, इस सबके पीछे यही कारण है। हमारी नस-नस में देवी ही देवी व्याप्त है। हमसे उसे कभी किसी भी तरह का दुःख नहीं होगायह विश्वास दिलाएँगे ।"
"इतनी उत्तम, विचारपूर्ण भावना के होते हुए भी मुझे लग रहा है कि तुम्हारी दृष्टि बम्मलदेवी पर है इसलिए सीधा सवाल करती हूँ- तुम राजदम्पती और बच्चों को यादवपुरी जाना तो ठीक है, लेकिन उसे उधर क्यों जाना चाहिए ?"
"पल्लव राजकुमारी समर का ज्ञान रखती है। हमारे आश्रय में आयी है। विवाह करवाकर मुक्त करवाने तक सन्निधान के सानिध्य का ही आश्रय माँगकर मंचि दण्डनाथ यहाँ ठहरे हैं। अभी उन्हीं राजकुमारी के धैर्य और साहस के
पट्टमहादेवी शान्तला भाग तोन : 25