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णमोकार मंथ
ॐ ह्री ईश्वर नमः ॥६७॥ समलवियों के ईश्वर आप हैं, आप केवल ज्ञान के स्वामी हैं, आप समस्त विद्याओं के जानने वाले गणधरादिकों के स्वामी हैं इसलिए आप विश्वविद्यश कहे जाते हैं || १७ ||
ॐ ह्रीं ग्रह विश्वयोनये नमः || १८ || आप समस्त पदार्थों की उत्पत्ति के कारण हैं श्रर्थात् सब पदार्थों का उपदेश देने वाले हैं इसलिए आप विश्वयोनि कहलाते हैं || १८ ||
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ॐ ह्रीं अर्ह अनश्वराय नमः || १६ || आपके स्वरूप का कभी नाश नहीं होता इसलिए श्राप अनश्वर कहे जाते हैं ।। १६ ।।
ॐ ह्रीं अहं दर्शने नमः ||२०|| आप समस्त लोकालोक को देखने से विश्व द्रष्टा कहलाते हैं ||२०||
ॐ ह्रीं श्रीं विभुवे नमः ||२१|| केवलज्ञान के द्वारा आप सब जगह व्याप्त हैं अथवा जीवों को संसार से पार करने में समर्थ हैं और आप परम त्रिभूति संयुक्त हैं, इसलिए आप को विभू कहते हैं ||२१||
ॐ ह्रीं अर्ह पात्रे नमः ||२२|| चारों गतियों में परिभ्रमण करने वाले जीवों का उद्धार कर मोक्ष स्थान में पहुंचाने वाले हैं तथा दयालु होने से आप सब जीवों की रक्षा करते हैं इसलिए आप धाता कहलाते है ||२२||
ॐ ह्रीं ग्रहं विश्वेशाय नमः ||२३|| समस्त जगत के स्वामी होने से श्राप विश्वेश कहलाते हैं ||२३||
ॐ ह्रीं
विनाय नमः ||२४|| समस्त जीवों को सुख की प्राप्ति का उपाय श्रापने दिखलाया है इसलिए आप जीवों के नेत्रों के समान होने से विश्वलोचन कहलाते हैं ||२४|| ॐ ह्रीं यह विश्वव्यापिने नमः ||२५|| केवलज्ञान के द्वारा समस्त लोकालोक में आप व्याप्त हैं और केवल समुद्घात करते समय आप के आत्मा के प्रदेश समस्त लोकाकाश में व्याप्त हो जाते हैं। इसलिए आपको विश्वव्यापी कहते हैं ||२५||
ॐ ह्रीं ग्रह विधवे नमः ||२६|| आप कर्मों का नाश करने वाले हैं अथवा केवलज्ञान रूपी किरणों के द्वारा मोहरूपी अंधकार का नाश करने वाले हैं इसलिए आप विधु हैं ॥ २६ ॥
ॐ ह्रीं श्रई बेधाय नमः ॥ २७ ॥ आप धर्म रूप जगत को उत्पन्न करने वाले हैं इसलिए आप - वेधा कहलाते हैं ॥२७॥
ॐ ह्रीं
शाश्वताय नमः ||२६|| प्राप सदा विद्यमान रहते हैं, नित्य हैं इसलिए शाश्वत्
कहे जाते हैं ||२८||
ॐ ह्रीं अहं विश्वतोमुखाय नमः ||२६|| आप के चारों दिशाओं में चार मुख दीखते हैं तथा आपके मुख के दर्शन मात्र से जीवों का संसार नष्ट हो जाता है जल का मुख्य नाम विश्व है, आप जल के समान कर्मरूपी मल को धोने वाले हैं। विषयों की तृष्णा को नष्ट करने वाले और अत्यन्त स्वच्छ हैं इसलिए श्राप विश्वतोमुख कहलाते हैं ||२६||
ॐ ह्रीं अहं विश्वकर्मणे नमः ||३०|| आप के मत में समस्त कर्म ही दुख आप ने जीविका के लिए षट् कर्मों का उपदेश दिया है इसलिए आपको है ||३०||
देने वाले हैं एवं विश्वकर्मा कहते