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जमोकार व
पौष शुक्ल १५ । केवल ज्ञान समय–अपरान्ह काल । केवल ज्ञान स्थान-मनोहर वन । समवशरण का प्रमाण-पाँच योजन । गणधर संख्या...४३ । मुरुगणधर का नाम-प्ररिष्ट । वादियों की संख्या२८००।
चौदह पूर्व के पाठी-नौ सौ । प्राचारांग सूत्र के पाठी शिष्य मुनि-४०७०० । अवधिमानी मुनियों की संख्या--३६०० । केवल शानियों की संख्पा-४५०० । विक्रियाऋद्धि धारी-मुनियों की संख्या -७००० । मनःपर्ययज्ञानी मुनियों की संख्या - ४५०० । वादित्र ऋद्धिधारी मुनियों संख्या२८० । समस्त मुनियों की संख्या-६४००० । प्राधिकानों की संख्या-६२४००० । मुख्य प्रापिका का नाम-मार्य शिवा। श्रावकों की संख्या-दो लाख । श्राविकाओं को संख्या-चार लाख । समवशरण काल-एक वर्षे कम २५०००० वर्ष । मोक्ष जाने के चौदह दिन पहले समवशरण विघटा। निर्वाग तिथि-ज्येष्ठ शुक्ल ४ । निर्वाण नक्षत्र-पुष्य । मोक्ष जाने का समय-रात्रि । मोक्ष जाने के समय का आसन-कायोत्सर्ग । मोक्ष स्थान-सम्मेद शिखर (सुदत्तवर कूट)।
भगवान के मुक्ति गमन के समय नौ सौ पाठ मुनि साथ मोक्ष गए । समवशरण से समस्त ४६७०० मुनि मोक्ष गए। इनके तीयं में बत्तीस केवली हुए पश्चात् पाव पल्य पर्यन्त चतुर्विध संघ का
होने से धर्म का विच्छेद रहा। जब श्री शान्तिनाथ भगवान ने जन्म लिया तब पुनः धर्म का प्रचार हुमा।
प्रति श्री धर्मनाथ तीर्थकरस्य विवरणम् ।
प्रय श्री षान्तिनाय तीयंकरस्य विवरण प्रारम्भः:__ श्री धर्मनाथ भगवान के निर्वाण होने के मनन्त र तीन सागर के बाद श्री शान्तिनाथ भगवान ने जन्म लिया। इनका पहला भव-सर्वार्थ सिद्धि 1 जन्मस्थान-हस्तिनापुर । पिता का नाम-श्री विश्वसेन । माता का नाथ - ऐरादेवी 1 वंश-कुरु । गर्भ तिथि-भाद्रपद कृष्ण ७ । जन्म तिथि-ज्येष्ठ कृष्ण धौदश । जन्म नक्षत्र-भरणी । शरीर का वर्ण-सुवर्णसम । चिन्ह-मृग । शरीर प्रमाण-४० धनुष ।
प्रायु प्रमाण-एक लाख वर्षे । कुमार काल-पच्चीस हजार वर्ष । राज्य :-५०००० हजार वर्षे । पाणिग्रहण किया। इनके समकालीन प्रधान राजा का नाम-पुरुषदत्त । दीक्षा तिषि-ज्येष्ठ कृष्ण चौदश । भगवान के तप कल्याणक के गमन के समय की पालकी का नाम-सिद्धार्या । भगवान के साथ वीक्षा लेने वाले राजानों की संख्या-१००० ।
दीक्षा वृक्ष -मंदिवृक्ष | तपोवन-सहस्रावन (हस्तिनापुर)। वैराग्य का कारण-उल्कापात होते देखना । वीक्षा समय -अपरान्ह । दीक्षा लेने से एक बेला पश्चात् प्रथम पारणा किया । नाम नगर जहाँ प्रथम पारणा किया-सोमनसपुर (पम खंड)
प्रथम प्राहार दाता का ना--धर्ममित्र । तपश्चरण काल-एक वर्ष । केवल ज्ञान तिपिपौष शुक्ल १०। केवलमान समय-अपरान्ह काल । केवलशान स्थान-मनोहर वन । समवशरण का प्रमाण-साढ़े चार योजन । गणधर संख्या-छत्तीस । मुख्य गणधर का माम-पक्रायुध । वारियों की संख्या-२४००।
चौदह पूर्व के पाठी-८०० । माचारोगसूत्र के पाठी शिष्य मुनि-४८८०० । प्रवषिशानी मुनियों की संख्या-३००० । केवलशानियों की संख्या-४००० । विक्रियाऋडि धारी मुनियों की