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भमौकार प्रथ
आठवें प्रतिनारायण रावण-इनका शरीर प्रमाण सोलह धनुष और प्रायु प्रमाण बारह हजार वर्ष था।
नबमें प्रतिनारायण जरासिंध-इनका शरीर प्रमाण दस धनुष और प्रायु प्रमाण एक हजार बर्ष था। ये नय प्रतिनारायण वर्तमान काल में हुए हैं।
प्रथ नव नारद वर्णनम् अब मागे इनके समय में होने वाले नव नारदों का वर्णन लिखते हैं
ये सब ब्रह्मचारी और अनेक ऋद्धियों सहित होते हैं । इनके मान कषाय भी विशेष होता है। कलह अतिप्रिय विशिष्ट होती है । इस कारण दो लोगों को परस्पर भिड़ा देते हैं । कलह कराने में अति चतुर होते हैं । अपना मान बढ़ाई बहुत चाहते हैं। जो कोई भी इनका अनादर करता है ये तत्काल ही उसका अनादर करने का प्रस्थान करते हैं और सभामा का मिशाहरामा, सती सीता के रूप की प्रशंसा उसके भाई भामंडल से करके उसको पाणिग्रहण करने पर उद्धत किया 1 अन्त में भेद खुलने पर अति खेद और संताप हुआ रुपमणी का विवाह श्रीकृष्ण से कराया। इस प्रकार इनके सदैव कलहप्रिय भाव रहते हैं । इस कारण ये सब ही नियाम से नरकगामी होते हैं । इस वर्तमान काल में जो नव नारद हुए हैं उनके नाम इस प्रकार हैं
(१) भीम, (२) महाभीम, (३) रुद्र, (४) महारुद्र, (५) काल, (६) महाकाल, (७) दुर्मुख, (८) नर्कमुख और (8) अधोमुख ।
ये नव नारद नब नारायणों के रूप में क्रम से पृथक-पृथक हुए हैं। इनका काय-प्रमाण तथा आयु प्रमाण नारायण के समान ही जानना चाहिए ।
अथ रुद्र वर्णनम् अब प्रागे रुद्रों का वर्णन लिखते हैं
कामदेव के वशीभूत होकर मुनि और प्रजिका जब भ्रष्ट हो जाते हैं तब उनके परस्पर समागम से इनकी उत्पत्ति होती है ये स्वभाव से ही बड़े पराक्रमी होते हैं और अनेक प्रकार का तपश्चरण प्रादि करके अनेक विद्या सिद्ध करते हैं । तदनन्तर ये भी कामदेव के वशीभूत हो अपने प्राचरण से भ्रष्ट होकर निंद्य माचरण करने लगते हैं जिससे घायु के अन्त में मरण कर ये भी नरकगामी ही होते हैं । इस वर्तमान चौथे काल में जो ग्यारह रुद्र हुए हैं उनके नाम इस प्रकार हैं
पहले रुद्र भीमवली-ये प्रादिनाथ भगवान के समय में हुए हैं। इनका शरीर प्रमाण पांच सौ धनुष और प्रायु प्रमाण तिरासी लाख पूर्व या।।
दूसरे रुद्र जितशत्रु-ये अजितनाथ भगवान के समय में हुए। इनका शरीर प्रमाण चार सौ पचास धनुष पौर आयु प्रमाण इकहत्तर लाख पूर्व या १२॥
तीसरे रुद्र रुद्र-ये श्री पुष्पदन्त भगवान के समय में हुए । इनका शरीर प्रमाण सौ धनुष और प्रायु प्रमाण दो लाख पूर्व था ।३।
चौथे रुद्र विश्वानल-ये श्री शीतलनाथ भगवान के समय में हुए। इनका शरीर प्रमाण नम्बे धनुष पौर प्रायु प्रमाण एक लाख पूर्व था।