________________
नमोकार प्रेम
कोटपाल के समान ओ स्वर्ग लोक की रक्षा करने वाले हों उन्हें लोकपाल कहते हैं ।३। इन्द्रों के मन्त्री पुरोहित के समान जो शिक्षा देने वाले हों उन्हें प्रायस्त्रिश कहते हैं ।४।
जिनके प्राज्ञा और एश्वर्य रहित स्थान, आयु, परिवार, भोग प्रादि इन्द्र के समान हों उन्हें सामानिक जाति के देव कहते हैं। इन्द्र इनको माता पिता व उपाध्याय के समान गिनता है और अन्य देव इनका इन्द्र के समान प्रादर सत्कार करते है।
जो इन्द्र की सभा में अंगरक्षक के समान हाथों में शस्त्र लिए हुए इन्द्र के पास खड़े रहते है उन्हें अग रक्षक कहते हैं ।६।
इन्द्र की सभा में जो प्रधान हों उन्हें पारिषद कहते हैं ।७।
जो गज अश्व आदि सात प्रकार की सेना के रूपों को धारण करने वाले देव होते हैं उन्हें पानीक जाति के देव कहते हैं।।
प्रजा के समान विमानों में रहने वाले जो साधारण देव होते हैं उन्हें प्रकीर्णक दे। कहते हैं ।
जो सेवकों के समान इन्द्र आदि की सेवा कर्म करते हैं उन्हें अभियोग्य जाति के देव कहते हैं ।१०।
जो चांडालों के समान नगर के वाहर रहने वाले इन्द्र प्रादि देवों के सम्मान प्रादि के अनधिकारी देव होते हैं उन्हें किल्विषिक जाति के देव कहते हैं ।११।।
___ इस प्रकार के प्रत्येक निकाय के देवों में उपरोक्त इन्द्र, सामानिक प्रादि ग्यारह भेद होते हैं परन्तु व्यन्तर और ज्योतिष जाति के देवों में प्राय स्त्रिश और लोक पाल जाति के देव नहीं होते ।
भावार्थ :-व्यंतर और ज्योतिषि जाति के देवों में प्राठ-पाठ भेद ही होते हैं : अब देवों के प्रकारों के कहे हुए प्रथम भवनवासी देव के दस भेदों को कहते हैं
भवनवासी देवों के (१) असुर कुमार, (२) नाग कुमार, (३) सुपर्ण कुमार, (४) द्वीपकुमार, (५) उदधि कुमार, (६) विद्यत कुमार, (७) स्तनित कुमार, (८) दिक्कुमार, (६) अग्नि कुमार, और (१०) वात कुमार ऐसे दस भेद हैं। इनमें एक-एक कुल में दो-दो इन्द्र हैं। असुर कुल में चमर भोर वैरोचन, नाग कुमार कुल में भूतानन्द' और धरणानन्द, सुपर्ण कुमार कुल में वेणु और वेणुधारी, द्वीप कुमार कुल में पूर्ण और वशिष्ट, उदधि कुमार कुल में जलप्रभ और जलकांत विधुत कुमार कुल में घोष और महाघोष, स्तनित कुमार कुल में हरिषेण और हरिवाहन, दिक्कुमार कुल में अमित गति और अमित वाहन, अग्नि कुमार कुल में अग्निशिखी और अग्निवाहन वात कुमार कल में वलंभ और प्रभंजन-इस प्रकार भवनवासियों के प्रत्येक कल में दो-दो इन्द्र और प्रत्येक इन्द्र के एक-एक प्रत्येन्द्र होता है। बीस इन्द्र और इतने ही प्रत्येन्द्र ऐसे भवनवासियों के समस्त चालीस इन्द्र हैं। प्रसुर कुमार से लेकर बात कुमार पर्यन्त दस प्रकार के भवनवासी देवों के मुक टों में क्रम से (१) चूडामणि रत्न (२) सर्प, (३) गरुड़, (४) गज, (५) मत्स्य, १६) स्वस्तिक (सांथिया), (७) बज (८) सिंह, (६) कलश और (१०) अश्व-ये दस चिन्ह होते हैं अथवा इनके अतिरिक्त पृथक-पृथक प्रकार के चैत्य वक्ष और ध्वजा में भी इनके चिन्ह होते हैं। इन दशविध भवनवासी देवों के अनुक्रम से (१) अश्वत्थ वृक्ष, (२) सप्तपर्ण वृक्ष, (:) शाल्मली वृक्ष, (४) जंबू वृक्ष, (५। चैतस वृक्ष, (६) कदम्ब वृक्ष, (७) प्रियंग वृक्ष, (८) शिरस वृक्ष, (६) पलाश वृक्ष तथा (१०) राजद्रम पर्थात किरमाला वृक्ष पे दस चैत्य वृक्ष होते हैं । इन प्रत्येक प्रकार के वृक्षों के नीचे मुलभाग में एक एक दिशा में भवनवासी