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नमोकार च
तब सेठ के नौकर बोले, "हे स्वामिन् ! कौशाम्बी नगरी का एक धनिक व्यापारी जिसका नाम धवल सेठ है, व्यापार के निमित्त पांच सौ जहाज लेकर विदेश को जा रहा था । सो किसी कारण से उसके जहाज खाड़ी में अटक गए हैं और मंत्रणा करके विवेक रहित हो जहाज चलाने के लिए एक
बलि देना निश्चय कर हमको मनुष्य की तलाश में भेजा है सो मनुष्य हमको कोई मिलता नहीं है और सेठ का डर भी बहुत लगता है कि खाली जाएगें तो मार डालेगा आर वापस नहीं जायें तो हमें ढुंढवा कर फिर हमें अधिक कष्ट देगा। इसलिए हम आपकी शरण में हैं। किसी तरह हमें 'बचाइए यह सुनकर श्रीपाल बोले-"भाइयो तुम भय न करो। तुम कहो तो क्षण भर में करोड़ों वीरों का मर्दन कर डालू और कहो तो वहाँ चल कर सेठ का काम कर दूं?"
तब वे आदमी स्तुति करके गद्गद् बचन बोले-"स्वामिन यदि आप वहीं पधारेंगे तो प्रति कृपा होगी और हम लोगों के प्राण भी बच जायगें। श्रापका यश बहुत फैलेगा। पाप धीर बीर हो। आपसे सब काम हो जाएगा।" यह सुनकर श्रीपाल' जी तुरन्त ही यह विचार कर-"देखें कर्म का क्या बनाब है, क्या-क्या कौतुक होगा? मैं भी अपने बल की परीक्षा कर लूंगा" उन वनचरों के साथ चलकर शीन ही धवल सेठ के पास प्रा पहचा। सेवक सेठ से हाथ जोडकर बोले- हे सेठ ! आप जैसा पुरुष चाहते थे सो यह ठीक वैसा ही लक्षणयन्त है । अब श्राप का कार्य निस्संदेह हो जाएगा।' सो उस लोभ अन्ध-धवल सेठ ने बिना ही कुछ सोचे और बिना पूछे कि 'तुम कौन हो श्रीपाल' को बुलाकर, उबटना करा कर स्नान करवाया। इतर, फुलेल, चन्दनादि लगाकर उत्तम-उत्तम वस्त्राभूषण पहिनाए और बड़े गाजे बाजे सहित उस स्थान पर जहां जहाज अटक रहे थे, ले गए। तब वहाँ शूरवीरों ने इनके मस्तक पर घलाने के लिये खड़ग उठाया। तब श्रीपाल जी हषित हो मन में यह विचारते हुए कब इन सब का काल निकट पाया है बोले-"अरे सेठ! तुझे यहाँ जीव-वध करने से प्रयोजन है कि अपने जहाजों के चलने से है।" सेठ ने उत्तर दिया-"हमको जहाज चलाना है । यदि तू चला देगा तो तुझे फिर कोई तकलीफ देने वाला नहीं है।" तब श्रीपाल' जी बोले-"परे मूर्ख, लोभाँध ! तूने मुझे देखकर जरा भी शंका नहीं की और बलि देने को तत्पर हो गया सो ठीक ही है। क्योंकि कहा भी है -
"थि दोषो न पश्यति'' क्या तू समझता है कि मैं यहाँ तेरे उद्यम के अनुसार बलि हो जाऊगा ? देखू तेरे पास कितने शूरवीर हैं ? सबको एक ही बार में चूर-चूर कर डालूंगा देखू कौन साहस कर मेरे सामने बलि देने को प्राता है ? प्रानो शीघ्र ही प्रायो । देर मत करो और फिर देखो मेरे पराक्रम को । हे दुष्टो ! तुमको जरा भी लज्जा नहीं आती। विचार होन ! केवल लोभ के बश अनर्थ करने पर कमर बांध ली है सो यानो मैं देखता हूं कि तुम कितने पराक्रमी वीर हो श्रीपाल जी के साहस युक्त ऐसे निर्भय वचन सुनकर धवल सेठ और उसके सब पादमी मारे भय से कांपने लगे और नम्रता से विनय सहित स्तुति करके बोले--"स्वामिन् ! हम लोग अविवेकी हैं । आपका पुरुषार्थ जाने बिना ही यह साहस किया था। प्राप दयालु, साहसी, न्यायी व गुणवान हो। हम आपकी प्रशंसा कहाँ तक करें ? अब क्षमा करो और हमसे प्रसन्न होमो हम लोगों का संकट निवारण करो।" इस पर श्रीपाल जी को दया आ गई। तब उन्होंने अाशा दी-"अच्छा तुम लोग अपने जहाजों को शीघ्र तैयार करो।" तुरन्त ही सब जहाज तैयार किए गए।