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३१० सोलहवें स्वर्ग में पर्याय पाई तथा रपणमंजूषा आदि अन्य स्त्री तथा पुरुषों ने भी तप किया उसी के मनुसार गति पाई। देखो सिद्धचक्र व पंच नमस्कार मंत्र की महिमा कि कहाँ तो श्रीपाल कोठी था जो माठ दिन में कोड़ दूर कर कामदेव के समान रूपवान् हो गया और प्रथाह सागर से तिरा एवं इन्द्र के समान महा विभूति का स्वामी हुआ।
अतएव जो परम कल्याण अर्थात मोक्ष की इच्छा करने वाले सज्जन पुरुष हैं उन्हें प्रमाद छोड़कर नित्य ही भव-सागर से पार करने वाले पंच नमस्कार मंत्र का स्मरण, जाप तथा ध्यान करना चाहिए। यह महामंत्र तीन लोक में अपराजित है अर्थात् किसी से जोता नहीं जा सकता है। यह अनादि निधन मंगलरूप लोक में उत्तम और शरणाघार है । देखो, यह पंच परमेष्ठी मंत्र की प्राराधना से सीता को पति का मिलाप और अग्नि का जल हो गया था । अंजना जो इसी महामंत्र के प्रभाव से वन में रक्षा और पति का समागम हुआ था। यही महामंत्र धनदत्त सेठ ने सूली पर चढ़े हुए दृढ़ सूर्य चोर को दिया था जिसके प्रभाव से वह मर कर सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ था । और तो क्या पशु और पक्षियों की भी इसी मंत्र के प्रभाव से शभ गति हो गई। भुधरदास जी ने कहा है :
विषधर बाघ न भय करें, विनशें विघ्न मनेक । व्याधि विषम व्यंतर भनें, विपत्ति न व्याप एक ॥१॥ बैठत बलते सोबते, प्रावि अन्त लों धीर। इस अपराजित मंत्र को, मत विसरो हो वीर ॥२॥ सकल लोक सब काल में, सर्वागम में सार ।
भूधर कबहुं न भूलिए, मंत्र राज मम बार ॥ ३ ॥ प्राचीन काल में अनेक जीवों ने इसके द्वारा जो फल प्राप्त किया है उसे लिखने की शक्ति नहीं है। इस प्रकार नमस्कार मंत्र का महात्म्य जानकर भव्यों को उचित है कि वे प्रसन्नता के साथ इस पर विश्वास करें और प्रतिदिन इसको प्राराधना करें।
॥ इति श्रीपाल चरित्र संपूर्णम् ।। ॥इति णमोकार प्रध भाषा पमिका समाप्तम् ॥
॥ शुभं भवतु ।।