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णमोकार म
नरक में सम्पूर्ण नारकी कृष्णवर्ण होते हैं 1 कल्पवासी देवों के देवों के द्रव्य लेश्या (शरीरका वर्ण) भाव लेश्या के सदृश होता है । भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिपी, मनुष्य और तिर्यन्चों के कृष्ण प्रादि छहों द्रव्य लेश्या होती हैं तथा विक्रिया शक्ति से प्रादुर्भूत शरीर का वर्ण भी छहों में से किसी प्रकार का होता है । उत्तम भोगभूमि वालों का सूर्य समान, मध्य भोग भूमि वालों का चन्द्र समान और जघन्य भोगभूमि वालों का हरित वर्ण शरीर होता है । बादर जलकाधिक के शुक्ल और बादर तेजकायिक के पीत द्रव्य लेश्या होती है । वायुकाय के तीन भेद हैं
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घनोदधिवात, घनवात और तनुवात प्रथम का शरीर गो मूत्र वर्णवत्, दूसरे का शरीर मूंग समान और तीसरे के शरीर का वर्ण अव्यक्त है । सम्पूर्ण सूक्ष्म जीवों का तथा अपनी प्राप्ति के प्रारम्भ समय से शरीर पर्याप्ति पर्यन्त समस्त जीवों का शरीर नियम से कापोत वर्ण का होता है । विग्रहगति में संपूर्ण जीवों का शरीर शुक्ल वर्ण का होता है ।
षट् लेश्याओं के लक्षण -
अब षट् लेश्यापों के लक्षण कहते हैं
जो जीव श्रनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ कषायों सहित, द्वेषरूपी ग्रह से घिरा हुआ, लड़ाई के स्वभाव वाला. अधर्मी, निर्दयी और कठोर चित्त हो, दुराग्रही हो उसके कृष्ण लेश्या समझनी चाहिए । १ ।
जो काम करने में मंद हो अथवा स्वच्छन्द हो, वर्तमान कार्य करने में विवेक रहित हो, कला चातुर्य रहित मूर्ख हो, स्पर्शन आदि पंचेन्द्रियों के विषय सेवन करने में लम्पट हो, क्रोधी, मानी, लोभी और मायाधारी हो, आलसी हो, रागी द्वेषी, मोही, शोकी, क्रूर, भयंकर, प्रति निद्रालु और दूसरों को ठगने में प्रति दक्ष हो, कृत्य श्रकृत्य का विचार न करने वाला, धन-धान्य आदि अधिक परिग्रह रखने वाला और अधिक प्रारम्भ करने वाला हो उसे नील लेश्यावाला समझना चाहिए । २ ।
जो क्रोध, शोक, भय, मत्सरता, असूया, परनिन्दा श्रादि करने में तत्पर, सदा अपनी प्रशंसा करने वाला, दूसरों के मुख से अपनी प्रशंसा सुनकर हर्ष मानने वाला, अनेक प्रकार से दूसरों को दुःख देने अथवा दूसरों से बैर करने वाला, अपने हानि, लाभ को न समझने वाला, दूसरों के ऐश्वर्यं आदि को न सहन करने वाला, दूसरे का तिरस्कार और अपकीति चाहने वाला, युद्ध में मरने तक की इच्छा करने वाला, अहंकार रूपी ग्रह से घिरा हुआ, इच्छानुसार सब क्रियाओं को करने वाला, प्रशंसा करने पर सदा देने वाला और अपने कार्य प्रकार्य की कुछ भी गणना न करने वाला हो उसे कापोत लेश्या वाला समझना चाहिए | ३ |
जो पक्षपात रहित सबको समान देखने वाला (समदर्शी) द्वेष रहित हित और ग्रहित का विचार करने वाला, कृत्य व अकृत्य, सेव्य व अनुपसेव्य को समझने वाला, दयालु, दानदाता, सत्कार्यों में तत्पर और उदार चित्त वाला, कोमल परिणामी हो उसे पीत लेश्या वाला समझना चाहिए | ४ | जो याचार और मन से शुद्ध, दान देने में तत्पर, शुभ चितवन करने वाला, भद्र परि णामी, विनयवान्, सत्कार्य श्रीर सज्जन पुरुषों के सत्कार करने में सदा तत्पर, क्षमावान्, न्याय पथ पर चलने वाला, प्रिय वचन वक्ता और मुनि, गुरु आदि की पूजा में प्रीति युक्त हो उसे पच लेश्या वाला समझना चाहिए । ५ ।
जो निदानरहित, पक्षपात रहित, अहंकार रहित, राग और द्वेष से परान्मुख, स्नेह रहित, और सब जीवों में समदर्शी हो उसे शुक्ल लेश्या वाला समझना चाहिए। ६ ।