Book Title: Namokar Granth
Author(s): Deshbhushan Aacharya
Publisher: Gajendra Publication Delhi

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Page 331
________________ णमोकार ग्रंथ प्रपादशावती विवरण प्रारम्भ:प्रादि वृषोपदेशक श्री ऋषम देव के समय में उनके पुत्र भरत प्रथम पक्रवर्ती हुए । उनके शरीर का प्रमाण-५०० धनुष, मायु-चौरासी लाख पूर्व, उसमें कुमारकाल-सत्तर लाख पूर्व, महामंडलेश्वर पदस्थ राज्यकाल-हजार वर्ष पश्चात प्रायुषशाला में चक्र रतन प्रगट होने के प्रनन्तर दिग्विजय किया उसका काल-साठ हजार वर्ष, राज्यकाल-एक लाख पूर्व कम छह लाख पूर्व, संयम काल-तमुहुर्त, पश्चात शुक्ल ध्यान द्वारा घातिचतुष्क का प्रभावकर लोकालोक प्रकाशक केवल ज्ञान प्राप्त किया और संसार द्वारा पूज्य होकर किंचित न्यून एक लाख पूर्व पर्यन्त केवलशान द्वारा मोहरूप पन्धकार को नष्ट कर अनेक भव्यजनों को मात्महित मार्ग पर लगाया और अन्त में प्रघातिचतुष्क का भी नाश कर परमधाम मोक्ष सिधारे वे ऋषभदेव के सुल भरतमुनिराज मुझे भी मात्महित मार्ग पर लगावें। द्वितीय सागर नाम के चक्रवतिन श्री मजितनाय भगवान के समय में हुए, इनका शरीर प्रमाण-चार सौ पचास धनुष, आयु प्रमाण-बहत्तर लाख पूर्व था, उसमें पचास हजार लाख पूर्व तक तो वे कुमार और मंडलीक रहे। तीस हजार वर्ष पर्यंत दिग्विजय किया । उनहत्तर लाख सत्तर हजार. पूर्व, निन्यानवे हजार नौ सौ निन्यानवे पूर्वाए, तिरासी लाख वर्ष पर्यंत राज्य किया और एक लाख पूर्व काल तक संयमी रडे अन्त में केवल ज्ञान को प्राप्ति कर अनन्त अविनाशी मोक्ष लक्ष्मी के स्वामी हए। तीसरे मघवान नाम के चक्रवर्ती श्री धर्मनाथ पौर शान्तिनाथ भगवान के अन्तराल के प्रति धर्मनाथ भगवान के निर्वाण होने के प्रनन्तर मौर शान्तिनाय के अवतार से पहले मध्य के समय में हुए। इनका शरीर प्रमाण ४२६ धनुष, मायु प्रमाण-लाख वर्ष, उसमें कुमार काल-पच्चीस हजार वर्ष, महामंडलेश्वर पद को राज्य काल पच्चीस वर्ष, पश्चात् चक्रलाभ होने के पनन्तर दिग्विजय काल · दस हजार वर्ष, तदनन्तर राज्यकाल-तीन लाख नब्बे हजार वर्ष, संयम काल-पचास हजार वर्ष, पश्चात साम्यभाव से मृत्यु लाभ कर स्वर्ग लोक प्राप्त किया ॥ ३ ॥ चौथे सनत्कुमार नाम के चक्रवर्ति थे, ये भी श्री धर्मनाथ पौर शान्तिनाथ भगवान के अन्तराल समय में हुए । इनका शरीर प्रमाण ४१३ घनुष, आयु प्रमाण-तीन लाख वर्ष, उस में कुमार कालपचास हजार वर्ष, महामंडलेश्वर पद पचास हजार वर्ष पश्चात चक्रलाभ होने के मनन्तर दिग्विजय काल-दस हजार वर्ष तदनन्तर राज्यकाल-नब्बे हजार वर्ष, संयम-काल एक लाख वर्ष, तदनंतर पायु के अन्त में शांति से मृत्यु लाभ कर स्वर्गलोक प्राप्त किया ॥४॥ और पांचवे चक्रवति श्री शांतिनाथ तीर्थकर हुए। इनका शरीर प्रमाण-४५ धनुष, प्रायु प्रमाण-एक लाख वर्ष, इसमें कुमारकालपच्चीस हजार वर्ष महामंडलेश्वर पद-पच्चीस हजार वर्ष, दिग्विजय काल-पाठ सौ वर्ष, पक्रवर्ती पदचौबीस हजार दो सौ वर्ष, संयम (तपश्चरण) काल-सोलह वर्ष ; तदनंतर शुक्ल ध्यान द्वारा पातिया कर्मों का नापाकर लोकालोक का प्रकाशक केवल ज्ञान प्राप्त किया और देव इन्द्र विद्याधर चक्रवर्ती भादि महापुरुषों के द्वारा पूजित हो समोशरणादि विभूति सहित भनेक देश, नगर, ग्रामों में बिहार करते हुए संसार ताप को नाश करने वाले परम पवित्र उपदेशामृत से अनेक जीवों को संसार दुख से छुटाकर सुखी बनाया, अन्त में अघातिया कर्मों का भी नाश कर प्रक्षयानंत मोक्ष सुख प्राप्त किया, ये शांतिनाथ स्वामी मुझे शांति प्रदान करे ।। ५ ।। छठे पक्रवति श्री कुथनाथ हुए । इनका शरीर प्रमाण-पिचानवे हजार वर्ष इसमें कुमारकालसईस हजार सातसौ पचास वर्ष, महामंडलेश्वर पद-पौने चौबीस इजार वर्ष, दिग्विजय काल-छह सौ वर्ष,

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