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णमोकार अंष
चक्रवर्ती पद-तेईस हजार डेढ़ सौ वर्ष, संयम काल सोलह वर्ष । तदनंतर घातिया कर्मों के नाश द्वारा केवल ज्ञान प्राप्त कर सोलह वर्ष कम पौने चौबीस हजार वर्ष पर्यंत केवलज्ञानी होकर अनेक जीवों को धर्मोपदेश देते हुए अन्त में अघातिया कर्मों का भी नाश कर परम धाम पद को सिधारे ॥ ६ ॥
सातवें चक्रवर्ती श्री अरहनाथ तीर्थकर हुए, इनका शरीर प्रमाण-३० धनुप, ग्रायु प्रमाण ... चौरासी हजार वर्ष, इसमें कुमार काल-२१ हजार वर्ष, महामंडलेश्वर पद--२१००० वर्ष, दिग्विजयचारसौ वर्ष, संयमकाल..-सोलह वर्ष, पश्चात् केवल ज्ञान प्राप्त कर सोलह वर्ष कम इक्कीस हजार वर्ष पर्यन्त दुर्गति के दुखों का नाश करने वाले पवित्र जैन धर्म का उपदेश देकर अनेक जीवों को प्रात्महित साधक पवित्र मार्ग पर लगाया और शान्त में प्रघातिया कर्मों का नाश कर अनन्त काल स्यामी निज आत्मिक सुख को प्राप्त किया ॥ ७ ।।
आठवें सुभुम नाम के चक्रवर्ती श्री अरहनाथ और मल्लिनाथ भगवान के अन्तराल में हुए। इनका शरीर प्रमाण-२८ धनुष, प्रायु प्रमाण–अड़सठ हजार वर्ष, इसमें कुमार काल - पांच हजार वर्ष, दिग्विजय काल ---पांच सौ वर्ष, चक्रवर्ती पद -बासठ हजार पाँच सौ वर्ष । ये परशुराम के भय से सन्यासियों के साश्रम में गोप्य रहे, इसमे मांसार सरीर भोगों से विरक्त नहीं हुए और इसी अवस्था में प्रार्तध्यान से मरण कर महातम नाम सप्तम पाताल भूमि के निवासी हुए ।। ६ ।
नवमें महापद्म नाम के चक्रवति श्री मल्लिनाथ और मुनिसुव्रतनाथ के अन्तराल में हुए । इनका शरीर प्रमाण बाईस धनुष, मायु प्रमाण-तीस हजार वर्ष, उस में कुमार काल - पांच सौ अपं, महामण्डलेश्वर पद'-पाँच सौ वर्ष, दिग्विजया-तीन सौ वर्ष, चक्रवति पद.. अठारह हजार सात सौ वर्ष, संयम काल-दश हजार वर्ष । पश्चात् केवल ज्ञान प्राप्त कर कुछ समय के अनन्तर अघातिया को का प्रभाव कर मोक्षगामी हुए ॥ ६॥
दश सुषेणनाम के चक्रवर्ती श्री मुनिसुसुवनाथ और नमिनाथ भगवान के अन्तराल में हुए। इनका शरीर प्रमाण-बीस धनुष, आयु प्रमाण-छब्बीस हजार वर्ष, उसमें कुमार काल-सवा तीन सौ वर्ष, दिग्विजय-डेढ सौ वर्ष, चक्रवति पद-पच्चीस हजार एक सौ पच्चीस वर्ष, संयम काल-साढ़े तीन सौ वर्ष । पश्चात् केवल ज्ञानी हो मन्त में प्रघातिया कर्मों का प्रभावकर परमधाम सिधारे । ग्यारहवें जयसेन नाम के चक्रवति श्री नमिनाथ और नेमि नाथ भगवान के अन्तराल में हुए। इनका शरीर प्रमाण---१४ धनुष, प्रायु प्रमाण--चौबीस सौ बर्ष, उसमें कुमार काल-सौ वर्ष दिग्विजय काल-- सौ वर्ष, चक्रवति पद-अठारह सौ वर्ष, संयम काल-केवल ज्ञान समय प्रमाणा चार सौ वर्ष। अन्त में प्रघातिया कर्मों का नाश कर निर्वाण गामी हुए ॥ ११ ।। बारहवें ब्रह्मदत्त नाम के चक्रवति श्रीनेमनाथ और पार्श्वनाथ भगवान के अन्तराल में हुए, इनका शरीर प्रमाण-सात धनुष, भायु प्रमाण -सात सौ वर्ष, इसमें कुमार काल-प्रठाईस वर्ष । महामंडलेश्वर ---छप्पन वर्ष, दिग्विजय कालसोलह वर्ष, चक्रवति राज्य काल-छह सौ वर्ष । इस प्रकार सात सौ वर्ष राज्य में हो पूर्ण कर अंत में आर्तध्यान से मरण प्राप्त कर सप्तम पाताल परा पधारे । इस प्रकार बारह चक्रवयिों के मायु का प्रमाण कहा । ये सब चक्रवति षटखंड के अधिपति और समान वैभव के धारक होते हैं, उनकी विभूति का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है।
चौपाई सहस बत्तीस सात सौ देश, धन कन कंचन भरे विशेष । विपुल बाउ बेढे चहुँ भोर, ते सब गाँव छियानवे कोर ॥ १।। कोट-वोट दरवाजे चार, ऐसे पुर छब्बीस इजार । जिन को लगे पांच सौ गांम, ते प्रटंब चड़ सहस मुठाम ॥ २ ॥