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णमोकार ग्रंथ
तिथि - फाल्गुन कृष्ण १२ । निर्वाण नक्षण - श्रवण । मोक्ष जाने का समय-रात्रि । मोक्ष जाने के समय का आसन - कायोत्सर्ग मोक्ष स्थान- सम्मेद शिखर (निर्जरा कूट ) । भगवान के मुक्ति गमन के समय १६२०० मुनि मोक्ष गए। समवशरण से समस्त एक हजार मुनि मोक्ष गए। इनके तीर्थ में बारह केवली हुए ।
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इति श्री मुनिसुव्रतनाथ तीर्थंकरस्य विवरणम् ।
अथ श्री नमिनाथ तीर्थंकरस्य विवरणम् :
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श्री मुनिसुव्रतनाथ भवगान के निर्वाण होने के अनन्तर छह लाख वर्ष व्यतीत होने के बाद श्रानन्दकन्द भव्य जन तारक श्री नमिनाथ भगवान ने अपराजित विमान से चयकर अपने जन्म से भारतवर्ष को परम किया। इसका जन्म स्थान - मिथलापुरी । पिता का नाम - श्री विजयरथ । माता का नाम-प्रा देवी । वंश - इक्ष्वाकु । गर्भ तिथि - श्राश्विन कृष्ण २॥ जन्म तिथि-भाषाढ़ कृष्ण १० । शरीर का वर्ण - सुवर्ण सम । चिन्ह-नील कमल शरीर प्रमाण- पन्द्रह धनुष । आयु प्रमाण-दस हजार वर्ष । कुमार काल --- पच्चीस सौ वर्ष राज्य काल-क हजार वर्ष । पाणिग्रहण किया। समकालीन प्रधान राजा का नाम-विजयराम । दीक्षा तिथि-आषाढ़ कृष्ण १०। भगवान के तच कल्याणक के गमन के समय की पालकी नाम - उत्तरकुरु । भगवान के साथ दीक्षा लेने वाले राजाओं की संख्या - १००० दीक्षा वृक्ष -- मौलसिरी । तपोवन सहस्त्र भ्रवन ( मिथलापुर ) । वैराग्य का कारण उल्कापात होते देखना । दीक्षा समय- अपरान्ह । दीक्षा लेने से एक बेला करने के पश्चात् प्रथम पारणा किया। नाम नगर जहाँ प्रथम पारणा किया -- राजाग्रही ( महीपुर ) । प्रथम श्राहार दाता का नाम सुनयदत्त । तपश्चरण काल -- नौ मास । केवलज्ञान तिथि - माघ शुक्ल ११। केवलज्ञान समय प्रपरान्ह काल | केवलज्ञान स्थान --मनोहर वन । समवशरण प्रमाण -- दा योजन। गणधर संख्या -- सत्रह । मुख्य गणधर का नाम -- सोमनाथ । वादियों की संख्या - १००० चौदह पूर्व के पाठी-सत सौ पचास । श्राचारांग सूत्र के पाठी शिष्य मुनि-- १२६००२ अवधिज्ञानी मुनियों की संख्या - १६०० । केवल ज्ञानियों की संख्या १६०० । विक्रिया द्विधारी मुनियों की संख्या - १५०० | मन:पर्यय ज्ञानी मुनियों की संख्या - १२५०३ वादिश्रऋद्विधारी मुनियों की संख्या - १०००। समस्त मुनियों की संख्या - २०००० । प्रायिकाओं की संख्या - ४५००० । मुख्य प्राथिका का नाम - प्रतिसा । श्रावकों की संख्या एक लाख । श्राविकामों की संख्या - तीन लाख ! समवशरण काल -- नव मास कम पच्चीस सौ वर्ष । मोक्ष गमन से तीस दिन पहले समवशरण विष्टा । निर्वाण तिथि--- वैशाख कृष्ण चौदश । निर्वाण नक्षत्र - प्रश्वनौ । मोक्ष जाने के समय का श्रासन — कायोत्सर्ग । मोक्ष स्थान - सम्मेदशिखर ( मित्रधर कूट) । भगवान के मुक्ति गमन के समय नौ हजार छह सौ मुनि साथ मोक्ष गए। समवशरण से समस्त १००० मुनि मोक्ष गए पश्चात् इनके तीर्थ में पाठ केवली हुए ।
इति श्री नेमिनाथ तीर्थंकरस्य विवरणम् ।
प्रथ श्री नेमिनाथ तीर्थकरस्य विवरणम् :
श्री नेमिनाथ भगवान के निर्माण होने के अनन्तर पांच लाख वर्ष व्यतीत होने के बाद श्रानन्द नेमिनाय भगवान ने प्रपराजित विमान से चयकर अपने जन्म से
कम्ब जितेन्द्र चंद्र मदन विजयी श्री वसुधा मंडल को मंडित किया ।
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