Book Title: Namokar Granth
Author(s): Deshbhushan Aacharya
Publisher: Gajendra Publication Delhi

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Page 313
________________ णमोकार ग्रंथ संख्या--तीन लाख । समवशरण काल-५६ दिन कम सात सौ वर्ष । मोक्ष जाने से तीस दिन पहले समवशरण विघटा। निर्वाण तिथि-प्राषाढ़ शुक्ल सप्तमी । निर्वाण नक्षत्र-चित्रा । मोक्ष जाने का समय-रात्रि । मोक्ष जाने के समय का आसन-कायोत्सर्ग। भगवान के साथ नौ हजार छह सौ मुनि मोक्ष गए। मोक्ष स्थान-गिरनार | समवशरण से समस्त पांच सौ छप्पन मुनि मोक्ष गए । इनके तीर्थ में चार केवली प्रौर हुए। इति श्रीद्वाविंशतम नेमिनाथ तीर्थंकरस्य गर्भागमन से मोक्ष गमन पर्यंत विवरण समाप्तः । अथ श्री पार्श्वनाय तीथंकरस्य विवरण प्रारंभः ॥ श्री नेमनाथ भगवान के निर्वाण होने के अनन्तर ८३७५० वर्ष व्यतीत होने पर प्रानन्द कंद श्री पार्श्वनाथ भगवान ने जन्म लिया। अब यहां प्रथम ही भगवान् को ध्यानारूढ़ देखकर संवर नामक ज्योतिषी देव ने अपना शत्रु जानकर जो घोर उपसर्ग किया था उसका कारण सहित संक्षिप्त वृतांत इस प्रकार है: इसी सुप्रसिद्ध और विशाल जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में सुरम्य देश के अन्तर्गत पोदनपुर नामक एक मनोहर नगर था। उस समय वह अपनी श्रेष्ठ सम्पदा और ऐश्वर्य से ऐसा जान पड़ता था, मानो सारे संसार की लक्ष्मी यहाँ आकर एकत्रित हो गई हो। यह सुख देने वाले उपवनों, प्राकृतिक सुन्दर पर्वतों और सरोवरों की शोभा से स्वर्गों के देवों तक का भी मन मुग्ध कर लेता था। यहां के स्त्री पुरुष सुन्दरता में अपनी तुलना में किसी को न देखते थे । यहाँ के सब लोग सुखी थे, भाग्यशाली ये और पुण्यवान थे। जिस समय का यह वर्णन है उस समय उसके राजा परविंद थे 1 अरविंद प्रजा के सच्चे हितैषी नीतिश और बुद्धिमान थे । इनके यहाँ विश्व भूति नाम का विप्रमंत्री था। विश्वभूति की स्त्री का नाम अनुधरी था । अनुधरी के दो पुत्र हुए। उनके नाम कमठ और मरुभूत थे । कमठ तो व्यसनी, कूल को कलंकित करने वाला था। और लघुपूत्र मरुभूत सदाचारी और बुद्धिमान था। इनमें कमठ की स्त्री का नाम वरुणा और मरूभूत की स्त्री का नाम बसुन्धरी था। एक दिन विश्वभूति ने अपने मस्तक में जरा के दूत श्वेत रोम को देखा उसके देखने मात्र से उन्हें वैराग्य हुमा। अपने लघु पुत्र मरूभूत को राजा की सेवा में छोड़कर उन्होंने उसी समय सब मायाजाल छोड मात्म हित का पथ जिन दीक्षा ग्रहण कर ली। राजा अरविंद मरूभूत को सौम्य प्राकृति और प्रालस्य, ईया, मत्सरता श्रादि दुर्गणों से रहित देखकर उससे बहुत प्रसन्न रहते थे। एक समय राजा परविंद ने मंत्री सहित सेना को लेकर राजा बज्रवीर्य के देश पर चढ़ाई की। उनके पोदनपुर से प्रयाण करते ही कमठ की पीछे बन पाई। उसने अपनी इच्छा का दुरुपयोग करना प्रारम्भ किया। व्यभिधार की प्रोर उसकी दृष्टि गई । मरूभूत की स्त्री बसुन्धरो बड़ी खूबसूरत थी। एक दिन उसे वस्त्राभूषणों से सुसज्जित देख लिया । बस फिर क्या था? देखते ही उसका हृदय काम के बाणों से बिंध गया । एक दिन कमठ बन क्रीड़ा के लिए गया हुआ था कि उसके मुख कमल को चिंतातुर देखकर उसके मित्र कलहंस ने दुराग्रह करके चिन्तातुर होने का कारण पूछा। तब उसने लज्जा त्यागकर अपना अभीष्ट कह सुनाया। सुनकर कलहंस ने उसे शिक्षाप्रद वचनों से बहुत कुछ समझाया पर उस चिकने घड़े पर शिक्षा रूपी निर्मल जल कहाँ प्रभाव डाल सकता था? उल्टा उत्तर में कहा :

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