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मोकार
वहाँ मनचाहा दिव्य सुख भोग सोलह सागर की आयु पूर्ण होने पर जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह में पुष्कलावती देश के अन्तर्गत सुप्रसिद्ध लोकोत्तमपुर नगर के राजा विधुतगति के यहाँ जन्म लिया
और पग्निवेग के नाम से संसार में प्रख्यात हुआ । अग्निवेग पुण्योदय से जो राज्यविभूति प्राप्त हुई उसे सुखपूर्वक भोगने लगा। उसके दिन प्रानन्द उत्सव के साथ व्यतीत होने लगे । एक दिन पुण्योदय से अग्निवेग मुनिराज के दर्शनार्थ गए ।
उनकी भक्ति से पूजा स्तुति कर उनसे धर्म का पवित्र उपदेश सुना उपदेश उन्हें बहुत रचा पोर उसका प्रभाव भी उस पर बहुत पड़ा। वह उसी समय संसार और विषय भोगों से विरक्त हो गया और पायाभ्यंतर परिग्रह का त्यागकर मुनिराज के पास मात्महित की साषक जिन दीक्षा ग्रहण कर ली और महा तप तपने लगे।
एक दिन इसी तरह वे हिमगिर की गुफा में ध्यानारुढ़ हो रहे थे कि इतने में ही इनसे शत्रुता रखने वाला कम: का जीव जिसने कि पूर्व भव में कुक्कुट नामक अहिपर्याय से वनयोष को डसने के पाप के फल से पंचम नरक में अवतार ले यहाँ छेदन भेदनादि अनेक प्रकार के दुख भोग मायु के पन्त में मरण कर अजगर पर्याय धारण की इस और मा निकला और उन्हें ध्यान में खड़े हुए देखकर उसे अपने बैरी पर बड़ा कोध पाया। अपने बर का बदला लेने के अभिप्राय से उसने मुनिराज को इस लिया । पग्निवेग मुनिराज ने धैर्य से विचलित न होकर इस कष्ट को बड़ी शान्ति के साथ सहा पन्त में समाधि से मरण कर पुण्य के फल से षोडशम् स्वर्गलोक प्राप्त किया । तप के प्रभाव से एक प्रतमुंहत्तं में माँखों में चकाचौध लाने वाले दिव्य तेजस्वी और अनुपम सौंदर्ययुक्त तीन हाथ प्रमाण शरीर पौर वाईस सागर प्रायु के धारक देव हुए और कमठ का जीव अजगर पाप के फल से मरण कर धूमप्रभा मामक पांचवी पाताल का निवासी हुमा ।
प्रथानंतर वह देव आयु के अन्त में अच्युत स्वर्ग से चयकर जंबूदीप के पश्चिम विदेह में पपदेश के अन्तर्गत सुप्रसिद्ध पश्वपुर नामक नगर के राजा वजवीरज की रानी विजया के गर्भ में अवतरित हुमा ।एक दिन रानी विषया अपने शयनागार में कोमल शय्या पर सोई थी कि उसे रात्रि के मन्तिम पहर में मेस-चन्द्रमा-सूर्य-सजलसरोवर और समुद्र ये पांच बातें स्वप्न में दीख पड़ी। उन्हें देखकर वह जाग उठी पौर प्रातःकाल. होते ही उसने अपने प्राणनाथ से स्वप्नों का वृतान्त ज्यों का त्यों कह सुनाया। सुनकर महाराज पचवीरज ने उनके फल के सम्बन्ध में यों कहा कि 'प्रिये ये स्वप्न तुमने बड़े ही सुन्दर देखे हैं। इनके देखने से सूचित होता है कि तुम्हें एक पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी हौर वह सबसे प्रधान क्षत्रिय वीर प्रारूपी कमलवन को प्रफुल्लित करने वाला होगा। उसके शासन से प्रजा बहुत सन्तुष्ट होगी।' अपने स्वामी के मुखारमिन्द द्वारा स्वप्नों का फल सुनकर विजया रानी को परमानन्द हमा । ठीक ही कहा है पुत्र प्राप्ति से किसे प्रसनन्नता नहीं होती। पानन्दपूर्वक कुछ समय बीतने पर विजया रानी मे शुभ लक्षणों से युक्त प्रतापी, सुन्दर पुत्ररत्न प्रसक किया । पुत्र प्राप्ति से दम्पत्ति को मानन्द हमा।
___ तत्पश्चात् राजा बजवीरज ने पुत्र जन्म के उपलक्ष्य में खूब मानन्द उत्सव किया। दुखी पनाम यावकों को यथेच्छित दान दिया। पूजा प्रभावना की । बंधुवांधवों ने महत मानन्द मनाया।