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अमोकार पंप
सातवीं विक्रिया प्रादि-ग्यारह प्रकार की होती है
(१) अणिपा ऋद्धि-जिस के बल से अपना शरीर छोटा कर सकते हैं। । (२) महिमा ऋद्धि-जिससे पर्वत के समान दीर्घ शरीर धारण कर सकते हैं।
(३) लघिमा ऋद्धि-जिसके बल से पाक वक्ष के तूल समान हलका शरीर धारण कर सकते हैं।
(४) गरिमा ऋद्धि-जिसके बल से पा से हसान गरीहारीत भारत का सका है। (५) प्राप्ति ऋद्धि -जिससे पृथ्वी पर बैठे मेरु प्रादि को पादांगुष्ठ से स्पर्श कर सकते हैं।
(६) प्राकाम्य ऋद्धि-जिससे समुद्र, सरोवर आदि के जल में पृथ्वी पर गमन करने के समान गमन करे।
(७) ईश्वरत्व ऋद्धि-जिससे अपनी इच्छा के अनुसार वैभव धारण कर सकते हैं । (८) वशित्व अद्धि-जिससे मनुष्य, पशु आदि को इच्छानुसार वश में कर सकते हैं । (8) अप्रतिघात ऋद्धि-जिससे पर्बत, कोट आदि को भेदकर अनिरुद्ध प्राकाशवत् चले जावें।
(१०) अन्तर्ध्यान ऋद्धि-जिससे अन्य मनुष्यों से दृष्टि अगोचर होकर स्वयं सब मनुष्यों को देख सकते हैं।
(११) कामरूपित्व ऋद्धि - जिससे पशु, पक्षी प्रादि का रूप इच्छानुसार बना सकते हैं। पाठवीं क्रिया ऋद्धि के दो मूल भेद और दश उत्तर भेद हैं । दो मूल भेद--(१) चारण ऋद्धि काशगामिनी ऋद्धि । चारण ऋद्धि आठ प्रकार की है{१) जल चारण ऋद्धि-जिसमें भूमि, वायु और जल पर गमन कर सकते हैं। (२) जंघाचारण ऋद्धि-जिससे पृथ्वी से चार अंगुल ऊपर चल सकते हैं। (३) पुष्प चारण ऋद्धि-पुष्पों पर पांव रखतेहुए गमन करे परन्तु फिर भी फूल न टूटे। (४) फल चारण ऋद्धि-जिससे फलों पर पर रखकर चलने पर भी फल न टूटें। (५) पत्र चारण ऋद्धि-जिससे पत्तों पर पैर रखकर चलने पर भी पत्र न टूटे ।
(६) शयन चारण ऋद्धि-जिससे कोमल तन्तु वाली बेल पर पैर रखकर चलने पर भी बेल न टूटें।
(७) तन्तुचारण ऋद्धि-जिससे मकड़ी के तन्तु पर पैर रखकर चलने पर भी तन्तु न टूटें।
(८) अग्निशिखा चारण ऋद्धि-जिससे अग्नि शिखा पर पैर रखकर चलने पर भी पैर न जले।
आकाशगामिनी ऋद्धि दो प्रकार है(१) पद्मासन ऋद्धि-जिससे पद्मासन बैठे हुए प्राकाश में गमन कर सकते हैं । (२) कायोत्सर्ग ऋद्धि-जिससे खड़े हुए प्राकाश में जा सकते हैं।
पाठ प्रकार की चारण ऋद्धि और दो प्रकार आकाशगामिनी ऋद्धि-इस प्रकार क्रिया ऋद्धि के दश भेद हैं।
॥ इति साधु गुण वर्णन समाप्त । अब अन्त में पंच परमेष्ठी की स्तुति कर प्रथम अधिकार समाप्त करेंगे।