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णमोकार ग्रंथ
संवर है । कर्मवर्गणाओं का प्रागमन रुकना द्रव्य संवर है । यह नीति है कि जिस कारण से जिस कार्य की उत्पत्ति होती है उस कारण के अभाव में उस कार्य की उत्पत्ति का भी प्रभाव हो जाता है। इसलिए इस जीव के जो संसार परिभ्रमण के कारण हैं, मिथ्यात्व, अविरत, प्रमाद, कषाय और योगों द्वारा प्रास्त्रव होकर बंध होता है, उस प्रास्रव को रोकने के लिए सम्यग्दर्शन से मिथ्यात्व का देशवत तथा महावत धारण करने से अविरत रूप भावों का निरालसी तथा ध्यानी होने प्रमादों का यथाख्यात चारित्र की प्राप्ति से कषायों का मन, वचन, काय की प्रवृत्ति के निरोध से योगों का संवर करना प्रत्येक मुमुक्षु का कर्तव्य है। इसी संवर को प्राप्त करने लिए प्राचार्यों ने ये कारण बतलाये है-पांच व्रत, पंच समिति, तीन गुप्ति, दस धर्म, बारह अनुप्रेक्षा, बाईस परिषह, पाँच प्रकार का चारित्र, यह संवर के लिए कारण हैं।
तीन गुप्ति(१) मनोयोग का रोकना मनोगुप्ति है। (२) वचनयोग का रोकना वचनगुप्ति है। (३) काययोग का रोकना कायगुप्ति है। पांच समिति
(१) जो मार्ग मनुष्यों और तिर्यचों के गमनागमन से खुद गया हो, सूर्य के प्राताप से तप्त हो गया हो, हलादि से जोता गया हो, ऐसे प्राशुक मार्ग से रवि के प्रकाश में आगे को चार हाथ भूमि को भली प्रकार देखकर मंद-मंद गमन करना, जिससे कोई जो प्रमाद अथात् असावधानी से न विराधा जाये। ऐसे शास्त्र श्रवण, तीर्थ यात्रा तथा आहार विहारादि आवश्यक कार्य के निमित्त गमन करना सम्यगोर्या समिति है।
(२) सर्व प्राणियों के लिए हितकर, कोमल, मिष्ट, सत्य वचन बोलना और लौकिक कर्कश हास्यरूप परामनिंदा प्रशंसक शब्दों का न बोलना सम्यम्भापा समिति है।
(३) निर्दोष (उदगमादि ४६ दोष रहित) शुद्ध (१४ मल दोष रहित) निरंतराय (३२ अन्तरायरहित) उत्तम श्रावक के घर अपने निमित्त नहीं किया हुआ एक बार लघु भोजन ग्रहण करना सम्यगेषणा समिति है।
(४) ज्ञान के उपकरण शास्त्र, संयम के उपकरण पीछी, शौच के उपकरण कमंडल आदि को नेत्रों से देखकर निर्जतु भूमि में यत्न पूर्वक उठाना, रखना, पटकना नहीं और हाथ पर देखकर पसारना समेटना निक्षेपण' समिति है।
(५) जीव जन्तु रहित उचित प्रासुक भूमि पर मलमूत्र आदि क्षेपण करना सम्पग्उत्सर्ग समिति है।
दस धर्म का वर्णनउत्तम क्षमा, उत्तम मार्जव, उत्तम प्रार्जब, उत्तम सत्य, उत्तम शौच, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन और उत्तम ब्रह्मचर्य इन दस लक्षणों से प्रात्मा के स्वभाव की परीक्षा होती है।
उत्तम क्षमा
दुष्ट लोगों के द्वारा तिरस्कार, हास्य, ताइन, मारण प्रादि क्रोध उत्पत्ति के कारण उपस्थित होने पर भी उन्हें दण्ड देने की शक्ति होने पर भी उन पर क्रोध नहीं करना, उनके विषय