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णमोकार
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निर्वाण तिथि- बिग शुक्ल पन्द्रह ।
मिनाम- मोक्ष जाने का समय-पूर्वान्ह । मोक्ष जाने के समय का मासान-कायोत्सर्ग । मोक्ष स्थान--सम्मेद शिखर (संकल्प कुट) । भगवान के मुक्ति गमन के समय एक हजार मुनि साय मोक्ष गए। समवशरण से समस्त ६५६०० मुनि मोझ गा। इनके तीर्थ में बहत्तर केवली हए। पश्चात पौण पल्य पर्यन्त चविध संघ का असदभाव होने से धर्म का प्रभाव रहा। जब श्री वासुपूज्य भगवान का जन्म हुना तब पुनः धर्म का प्रचार हुग्राम
इति श्री श्रेयांस नाथ तीर्थंकरस्य विवरणम् ।
अथ श्री वासुपूज्य तीर्थरस्य विवरणम्श्री श्रेयांसनाथ भगवान के निर्माण होने के अनन्तर चौवन सागर के बाद श्री वासुपूज्य भगवान ने जन्म लिया। इनका पहला भव -महाशुक्र नामक दसई स्वर्ग | जन्म स्थान -चम्पापुर । पिता का नाम-श्री वसुपुज्य । माता का नाम-विजयावती । वंश-इक्ष्वाकु । गर्भ तिथि-प्राषाई कृष्ण ६।
जन्म तिथि–फागुन कृष्ण चौदश । जन्म नक्षत्र-शतभिषा। शरीर का वर्ण-अरुण वरण चिन्हमहिष । शरीर प्रमाण-सत्तर धनुष । प्राय प्रमाण बहत्तर लाख वर्ष । कुमार काल-प्रदारह लाख वर्ष। राज्यकाल-३६ लाख वर्ष 1 पाणिग्रहण नहीं किया। समकालीन प्रधान राजा का नाम - त्रिपृष्ट (वासुदेव)। दीक्षा तिथि-फाल्गुन कृष्ण चौदश । भगवान के साथ दीक्षा लेने वाले राजाओं की संख्या ६०० 1 भगवान् के तप कल्याणक के गमन के समय की पालकी का नाम-पुष्प प्रभा। दीक्षावृक्ष ---पांडु वृक्ष । तपोवन - क्रीडोद्यान वन (चंपापुरी) 1 वैराग्य का कारण- मेघों का विघटना देखना । दीक्षा समय -अपरान्ह । दीक्षा लेने के ७१ दिवस पश्चात् प्रथम पारणा किया ।
नाम नगर जहां प्रथम पारणा किया-राजग्रही (मही पुर) । प्रथम पाहार दाता का नाम--- नन्द भूप । तपश्चरण काल-एक वर्ष । केवल शानतिथि-माघ शुक्ल २। केवल ज्ञान समय-पूर्वाह्न काल । केवल शान स्थान-मनोहर वन । समवशरण का प्रमाण-साढ़े छह योजन। गणधर मरूपा.-.. १६ । मुख्य गणधर का नाम --सुधर्म । वादियों की संख्या-४०० । चौदह पूर्व के पाठी ...१२०० । प्राचारांग सूत्र के पाठी शिष्य मुनि-३६२०० । अयधिशानी मुनियों की संख्या --५४०० । केवल शानियों की संख्या-६००० ।
विक्रिया ऋद्धि धारी मुनियों की संख्या-१०००० । मनः पर्ययज्ञानी मुनियों की संख्या ६५००। बादित्रऋद्धि धारी मुनियों को संख्या ४२०० । समस्न मुनियों की संख्या ७२००० । प्रायिकाओं की संख्या..-१०६००० । मुख्य प्रायिका का नाम-धरणी। श्रावकों को संख्या--२००००० श्राविकानों की संख्या-चार लाख । समवशरण काल -एक वर्ष कम प्रदारह लाख वर्ष कम । मोक्ष जाने के चौदह दिन पहले समवशरण विघटा । निर्वाण तिथि ----भाद्रपद शुक्ल चौदश । निर्वाण नक्षत्रअश्वनी । मोक्ष जाने का समय-प्रपरान्ह । मोक्ष जाने के समय का ग्रासन-कायोत्सर्ग । मोक्षस्थानचम्पापुर (पासालतट) । भगवान् के मुक्ति गमन के समय में चौरासी मुनि साथ मोक्ष मये । समवशरण से समस्त ५४६०० मुनि मोक्ष गए। इनके तीर्थ में चौवालीस केवली हुए। पश्चात् एक पल्य पर्यन्त चतुर्विध संघ का प्रभाव होने से धर्म का विच्छेद रहा । जब श्री विमल नाथ भगवान् का जन्म हुमा तब पुनः धर्म का प्रचार हुमा।
इति श्री वासु पूज्य तीर्थकरस्य विवरणम् ।